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________________ ३. स्थानांग - बहत्तर हजार पद । ४. समवायांग- एक लाख चवालीस हजार पद । ५. व्याख्या प्रज्ञप्ति - चौरासी हजार पद (समवायांग वृत्ति) । दो लाख अठासी हजार पद (नंदीवृत्ति । ६. ज्ञाता धर्म कथा— पाँच लाख छिहत्तर हजार पद अथवा सूत्रालापक रूप संख्येय हजार पद । ७. उपासक दशा- ग्यारह लाख बावन हजार पद । ८. अन्तकृद्दशा - तेईस लाख चार हजार पद । ९. अनुत्तरोपपातिक दशा— छियालीस लाख आठ हजार पद । १०. प्रश्नव्याकरण - बानवे लाख सोलह हजार पद । ११. विपाक सूत्र - एक करोड़ चौरासी लाख बत्तीस हजार पदं । दिगम्बर परम्परा - (धवला, जय धवला, गोम्मट सार जीवकाण्ड और अंग पण्णति के अनुसार) १. आचारांग - अठारह हजार पद । २. सूत्रकृतांग - छत्तीस हजार पद । ३. स्थानांग - बयालीस हजार पद । ४. समवायांग— एक लाख चौसठ हजार पद । ५. व्याख्या प्रज्ञप्ति - दो लाख अट्ठाईस हजार पट । ६. ज्ञाता धर्म कथा - पाँच लाख छप्पन हंजार पर । ७. उपासक दशा- ग्यारहं लाख सत्तर हजार ८३ । ८. अन्तकृद्दशा - तेईस लाख अट्ठाईस हजार पद । ९. अनुत्तरोपपातिक दशा - बानवे लाख चवालीस हजार पद । १०. प्रश्नव्याकरण - तिरानवे लाख सोलह हजार पद । ११. विपाक सूत्र - एक करोड़ चौरासी लाख पद । ऊपर ग्यारह अंगों की श्वेताम्बर और दिगंबर परंपरा में मान्य पद संख्या दी मई है। दोनों की मान्य पद संख्या में विशेष भेद है। श्वेताम्बर परंपरा में यह संख्या प्रथम अंग से प्रारंभ होकर आगे क्रमशः दुगुनी दुगुनी होती गई मालूम होती है, लेकिन दिगंबर परंपरा के उल्लेखों में ऐसा नहीं है। बारहवां अंग दृष्टिवाद अनुपलब्ध है । दिगंबर परंपरा के ग्रंथों में उसका पद परिमाण १०८६८५६०५ दस करोड़ छियासी लाख पिचासी हजार छह सौ पाँच बताया है। I (३४)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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