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________________ ७. उपासक दशा-इसके नाम से यह प्रकट होता है कि यह अंग उपासकों से संबंधित है । जैनों में उपासक शब्द जैन धर्मानुयायी श्रावकों- गृहस्थों के लिए प्रयोग में आता है । उपासक के साथ जो दशा शब्द जुड़ा हुआ है। यहाँ दोनों अर्थ समान रूप से संगत हैं, क्योंकि इस अंग में दस जैन श्रावकों की कथाएँ हैं और उनकी दशाओं का वर्णन किया गया है। ८. अंतकृत दशा-जिन्होंने आध्यात्मिक साधना द्वारा राग-द्वेष का अन्त करके मुक्ति प्राप्त कर ली है, उन्हें अन्तकृत कहते हैं। उनकी दशा- अवस्था का वर्णन इस अंग में हुआ है । अत: इसका अन्तकृत दशा यह नाम सार्थक है । ९. अनुत्तरोपपातिक दशा- यह नाम भी सार्थक है, क्योंकि जैन मान्यता के अनुसार स्वर्गों में अनुत्तर विमान सब से ऊँचा है। इस विमान में उत्पन्न होने वाले तपस्वियों का वृत्तान्त इस अंग में उपलब्ध है। उपपात या उपपाद शब्द का प्रयोग देवों या नारकों के जन्म के लिए किया जाता है, अत: यहाँ उपपात का यही अर्थ समझना चाहिए। १०. प्रश्न व्याकरण- प्रश्नों का व्याकरण-विवेचन- चर्चा जिस शास्त्र में की जाये, उसे प्रश्न व्याकरण कहते हैं । प्रश्न व्याकरण में हिंसा-अहिंसा आदि से संबंधित चर्चा है। ११. विपाक सूत्र- यह ग्यारहवें अंग का नाम है,। विपाक श्रुत, विपाक सूत्र, विवाय सुअ, विवाय सुय अथवा विवाग सुत्त ये सभी नाम एकार्थक हैं । विपाक शब्द का प्रयोग दर्शन और चिकित्सा शास्त्र में समान रूप से होता है । चिकित्सा शास्त्र में विपाक शब्द खान-पान इत्यादि के विपाक का सूचक है । यहाँ विपाक का उक्त अर्थ न लेकर आध्यात्मिक अर्थ लेना चाहिए। अर्थात् .सदसत् प्रवृत्ति द्वारा होने वाले आध्यात्मिक संस्कार के परिणाम का नाम विपाक है। पाप प्रकृति का परिणाम पाप विपाक है और पुण्य प्रकृति का परिणाम पुण्य विपाक है । प्रस्तुत अंग का ‘विपाक सूत्र' नाम सार्थक है, क्योंकि इसमें पुण्य-पाप के सुख-दुःख रूप फलों को भोगने वाले व्यक्तियों की कथाओं का संग्रह है। १२. दृष्टिवाद - यह द्वादशांगों में अंतिम अंग है । इसके लुप्त हो जाने से इसके वर्ण्य विषय का ठीक से अनुमान नहीं लगाया जा सकता। फिर भी शाब्दिक अर्थ लें, तो दृष्टि अर्थात् दर्शन और वाद अर्थात् चर्चा, इस प्रकार दृष्टिवाद का अर्थ हुआ- दर्शनों की चर्चा । इसलिए यह कहा जा सकता है कि इसमें प्रधानतया दार्शनिक चर्चाएं रही होगी, जिससे इसका नाम भी सार्थक मान लेना चाहिए। १. स्थानांग सूत्र (१० १७४२) में बारहवें अंग के दस पर्यायवाची नाम बताये हैं- १. दृष्टिवाद, २. हेतुवाद, ३. भूतवाद, ४. तथ्यवाद, ५. सम्यग्वाद, ६. धर्मवाद, ७. भाषा विचय अथवा भासा विचय, ८. पूर्वगत, ९. अनुयोगगत, १०. सर्वजीव सुखावह । इनमें से आठवाँ और नौवाँ दृष्टिवाद के प्रकरण विशेष के सूचक हैं । इन्हें औपचारिक रूप से दृष्टिवाद के नामों में गिनाया है। (३०)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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