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________________ पंचम अंग का संस्कृत, नाम 'व्याख्या प्रज्ञप्ति' है. और जनसाधारण इसे 'भगवती सूत्र' कहते हैं, लेकिन प्राकृत में विभिन्न शब्दों का प्रयोग देखने में आता है। जैसे धवला और जय धवाल में विवाह पण्णत्ति और गोम्मट सार जीवकांड में विवाय पण्णत्ति, विक्खापण्णत्ति शब्द है, जो संस्कृत रूप व्याख्या प्रज्ञप्ति के रूपान्तर है । अंग पण्णत्ति में विवाय पण्णत्ति अथवा विवाग पण्णत्ति नाम बताया है और इनका संस्कृत रूपान्तर विपाक प्रज्ञप्ति रखा है। वृत्तिकार अभयदेव सूरि ने विवाह पण्णत्ति और वियाह पण्णत्ति नाम स्वीकार किया है । वि + वाह प्रज्ञप्ति- ज्ञान के विविध प्रवाहों की प्रज्ञप्ति और विबाह पण्णत्ति का अर्थ किया है- वि + बाध प्रज्ञप्ति अर्थात् बिना बाधावाली प्रमाणसिद्ध प्रज्ञप्ति । वियाह पण्णत्ति, विवाह पण्णत्ति और विबाह पण्णत्ति ये तीनों पाठ मिले-जुले मालूम होते हैं। इनमें से 'वियाह पण्णत्ति' पाठ ठीक है । शेष दो प्रतिलिपिकारों की त्रुटि के परिणाम रूप हैं । यद्यपि संस्कृत नाम व्याख्या प्रज्ञप्ति' को देखते हुए प्राकृत नाम ‘वियाह पण्णत्ति' होना चाहिए था, जबकि सर्वत्र विवाह पण्णत्ति' रूप ही देखने को मिलता है, जो प्रतिलिपिकारों की असावधानी व अर्थ के अज्ञान के कारण ही ऐसा हुआ मालूम होता है । अति प्राचीन ग्रंथों में वियाहपण्णत्ति' रूप मिलता भी है, जो कि व्याख्या प्रज्ञप्ति का शुद्ध प्राकृत रूप है। संस्कृत ज्ञात धर्म कथा व प्राकृत नायाधम्म कहा अथवा णाया धम्म कहा में कोई अन्तर नहीं है । 'ज्ञात' का प्राकृत में 'नाय' होता है एवं समास में 'दीर्घाह्रस्वौमिथो वृत्तौ', इस नियम के अनुसार 'नाय' के ह्रस्व 'य' का दीर्घ 'या' होने पर 'नाया' हो जाता है । दिगंबर परंपरा में नायाधम्म कहा के बजाय ज्ञातृधर्मकथा, नाहस्स धम्म कहा, नाह धम्म कहा आदि नाम प्रसिद्ध हैं। इन शब्दों में नाम मात्र का फेर है। ज्ञात धर्म कथा अथवा ज्ञाताधर्म कथा का अर्थ है- जिनमें ज्ञात अर्थात् उदाहरण प्रधान हो, ऐसी धर्मकथाएँ अथवा जिस ग्रंथ में ज्ञातों वाली अर्थात् उदाहरणों वाली एवं धर्मवाली कथाएँ हो । ज्ञातृ धर्म कथा का अर्थ है- जिसमें ज्ञातृ अर्थात्- ज्ञाता अथवा ज्ञातृवंश के भगवान महावीर द्वारा कही हुई धर्म कथाएँ हों, वह ग्रंथ । यही अर्थ ज्ञातृ कथा का भी है। द्वितीय अंग का संस्कृतं नाम 'सूत्रकृत' है । राजवार्तिक आदि में भी इसी नाम का निर्देश है । धवला एवं जय धवला में सूदपद, गोम्मटसार जीवकांड में सुद्दपद तथा अंगपण्णत्ति में सूदयक नाम मिलते हैं । इन सब नामों में कोई अन्तर नहीं है । केवल शौरसेनी और अर्धमागधी प्राकृतों के अपने-अपने प्रयोग की भिन्नता से नामों में यह भिन्नता है। १. सिद्ध हेम शब्दानुशासन ८।१-४ (२८)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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