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________________ अध्याय ४. अंग आगमों का बाह्य परिचय प्रत्येक वस्तु के परिचय के दो रूप होते हैं- आन्तर परिचय और बाह्य परिचय । वस्तु के बाहरी रूप आकार-प्रकार, परिमाण को जानना बाह्य परिचय है और वस्तुगत गुणधर्म-स्वभाव को समझना अंतरंग परिचय है । इन दोनों में बाह्य परिचय सरल है और उससे कुछ न कुछ अंतर का भी आभास मिल जाता है । अतएव आगमों के दोनों रूपों का परिचय देने के प्रसंग में आन्तरकायी यत्किंचित् बोध कराने के लिए पहले उनका बाह्य परिचय देते हैं। ___ आगमों के बाह्य परिचय में अंगों के नाम के अर्थ, पद परिमाण, अंगों का क्रम, भाषा शैली, विषय विवेचन की पद्धति आदि एवं इनसे संबंधित अन्य बातों का उल्लेख किया जा चुका है। उनके नामों के उल्लेख का जो क्रम दिया गया है, वह आगमों में प्ररूपित प्रणाली पर आधारित है। जैसे समवायांम में आगमों के परिचय का यह पाठ है- 'तं जहा आयारे सूयगडे ठाणे समवाए. विवागसुए दिट्ठिवाए। इसमें ध्यान देने की जो बात है, वह यह है कि इन द्वादश ग्रंथों को अंग कहा गया है तथा इन्हीं द्वादश अंगों का जो वर्ग है, उसे गणिपिटक के नाम से भी संबोधित किया गया है । गणि पिटक में इन बारह के सिवाय अन्य आगम ग्रंथों का उल्लेख नहीं है । इससे यह संकेत मिलता है कि मूल रूप में ये ही आगम हैं, जिनकी रचना गणधरों ने की थी और जिन शब्दों में यह आगम उपलब्ध है, उनसे फलित होने वाला अर्थ या तात्पर्य भगवान द्वारा प्रणीत है ।२ शब्दं तो भगवान के नहीं है, किन्तु इन शब्दों का तात्पर्य स्वयं भगवान ने जो बताया है, उससे भिन्न नहीं है । उन्हीं के उपदेश के आधार पर गणधर सूत्रों की रचना करते हैं। किन्तु गणधर सूत्रों की रचना अपने मन से नहीं करते, जिससे ये आगम प्रमाण है। . १. समवायांग का प्रारंभ २. [क] तस्स णं अयमढे पण्णत्ते । - समवायांग का प्रारंभ [ख] अत्थं भासइ अरहा .... . - आवश्यक नियुक्ति १९२ ३. सुतं गंथंति गणहरा निउणा। .- आवश्यक नियुक्ति १९२ (२५)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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