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प्रतिक्रमण विधि संग्रह पौरुषों यावत् संपूर्णी स्यात् X । संप्रति तु श्रीतपागच्छसामाचारीतो दैसिक प्रतिक्रमणानंतरं जघन्यतोऽपि पंचशती गुणनीया, पाश्चात्थायां निशि च त्रिशती। इति दैवसिक प्रतिक्रमण विधिरुक्ता। ... ... ... ..
(प्रतिक्रमण गर्भहेतुः ५-६-१०) अर्थ-बाद में विधिपूर्वक बैठकर एकाग्र मन से “सर्व कर्तव्य परमेष्ठिनमस्कारपूर्वक करना चाहिये ।" इसलिये सर्वप्रथम नमस्कार. पढ़ना फिर सामायिक सूत्र “करेमि भंते०" इत्यादि पढ़े, बाद में "चत्तारिमगलं'' इत्यादि पढ़े, फिर "इच्छामि.पडिकमिउ जो मे देवसियो अइयारो को०" इत्यादि पढ़कर इरियापथिकी सूत्र पढ़, बाद में साधु प्रतिक्रमण सूत्र बोले, 'जाव तस्स धम्मस्स." यहां तक श्रावक आचरणादि से नमस्कार “करेमि भंते सामाइयं., इच्छामि पडिक्कमिउं०" इस प्रकार पूत्रपूर्वक श्राद्ध प्रतिक्रमण सूत्र .: पढ़े खड़ा होकर "प्रभुट्टिनोमिः'' इत्यादि सूत्र पाठ बोले। पांच
आदि साधुओं में तीनों को खमावे। फिर वन्दनकदानपूर्वक अवग्रह ' से बाहर निकलकर "पायरिय-उवज्झाए०" सूत्र पढ़े, ऊपर "करेमि भंते." इत्यादि सामायिक सूत्र पढ़े और कायोत्सर्ग में दो उद्योतकरों का चिंतन करे। कायोत्सर्ग पारकर ऊपर चतुर्विंशतिस्तव पढ़े। 'सव्वलोए अरिहन्त चेइयारणं.' इत्यादि सूत्र पढ़कर अरिहंतचैत्यार्थ कायोत्सर्ग करे और एक चतुर्विंशतिस्तव का चिन्तन करे। कायोत्सर्ग पार कर "पुक्खरवरदी वढ्ढे०" इत्यादि सूत्र पढ़कर “सुअस्स भगवओ करेमि काउस्सग्गं." इत्यादि पढ़के एक चतुर्विंशतिस्तव चिन्तन रूप कायोत्सर्ग करे । कायोत्सर्ग पारकर "सि द्वारणं बुद्धाणं." .. कहकर चतुर्विशतिस्तव द्वय चिन्तन रूप कायोत्सर्ग करे। सिद्धस्मरण,
वीरवदन, नेमिवंदन, अष्टापद, नन्दीश्वरादि नमस्कार रूप "चत्वारि