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________________ [ ५५ प्रतिक्रमण विधि संग्रह पापो मनुष्य भी गुरु के पास श्रालावना और निन्दा करके एकदम कर्मों के भार से हलका हो जाता है, जैसे ऊपर का बोझा उतार कर भारवाहक हलका होता है ||७|| बैठकर सामायिक श्रादि प्रयत्न पूर्वक सूत्र पढकर अब्भुट्टिओमि० " इत्यादि बोलता हुआ दोनों प्रकार से खड़ा हुआ क्षमापन सूत्र बोले ||३८| प्रतिक्रमण करते समय, स्वाध्याय करते समय, कायोत्सर्ग करते वक्त, अपराध गुरु के आगे प्रकट करते समय, आलोचना करते समय, प्रत्याख्यान करते समय और अनशन करते वक्त वन्दन करना चाहिए || ३ || पञ्चकादिसाधुओं की संख्या हो तब तीनों को खमाना चाहिए कृतिकर्म, वन्दन करके विद्वान् श्रद्धावान् तीन गाथा पढे ||४०|| इस प्रकार, सामायिक आदि सूत्र उच्चारण करके कायोत्सर्ग में रहे हुए चारित्राचार के अतिचारों की शुद्धि के लिये दो चतुर्विंशति स्तवों का चिन्तन करे ॥ ४१ ॥ प्रथम कायोत्सर्ग में प्रतिक्रमण करता हुआ सामायिक न करके दूसरा और तीसरा कायोत्सर्ग कैसे करता है ? जिसकी आत्मा समभाव में ही हुई है वह कायोत्सर्ग करके फिर प्रतिक्रमण करता है, इसी प्रकार समभाव में रहा हुआ तीसरा भी कायोत्सर्ग करता है ।। ४२-४३ ।। स्वाध्याय, ध्यान, तप, औषध, उपदेश, स्तुतिप्रदान और सद्गुणकीर्तन इतने कार्यों में पुनरुक्त (ष नहीं होते || ४४ || विधि से कायोत्सग पार कर सम्यक्त्व शुद्धि के हेतु ऊपर चतुर्विंशतिस्तव पढ कर और " सव्वलोए अरिहंत" इत्यादि चैत्याराधनार्थ कायोत्सर्ग करे उसमें लोगस्स का चितनकर शुद्ध हुआ है सम्यक्त्व जिसका ऐसा पुक्खर वरदी वढ्ढे यह कहें । श्रुत आराधना के निमित्त सूत्र बोले, फिर २५ श्वासोच्छवास का कायोत्सर्ग करें और विधि- पूर्वक
SR No.002245
Book TitlePratikraman Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherMandavala Jain Sangh
Publication Year1973
Total Pages120
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, Vidhi, & Paryushan
File Size8 MB
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