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________________ ५४] प्रतिक्रमण विधि संग्रह वन्दन के दोष इस प्रकार हैं- स्तब्ध १, अपविद्ध २, अनादृत ३, परिपिंडित ४, अंकुश ५, भाषोत ६, कच्छपरिंगित ७, टोलर्गात ८, ढढ्ढर ६, वेदिकाबद्ध १०, ।।२६।। द्विष्ट ११, रुद्ध १२, तर्जित १३, शठ १४, हीलित १५, स्तैनिक १६, प्रत्यनीक १७, दृष्टादृष्ट १८, शृंगवत् १६, कर २०, मोचन. २१, ऊन २२, मूक २३ ।। ३० ।। भय २४, मैत्री २५, गौरव २६, कारण २६६ परिकुचित २८, . भजन्त २६, आलिद्ध - अनालिद्ध ३०, चूलिका ३१, चुटियां, ३२ M बत्तीस दोष हैं ||३१॥ पच्चीस आवश्यक आगे मुजब है - दो प्रवेश और यथा जात ३, दो अवनत ५, प्रगट द्वादशावर्त १७, निष्क्रमण १८, त्रिगुप्त २१, चारशिर नमन २५, ये पच्चीस आवश्यक हैं ||३२|| अब सम्यक् शरीर नवाँकर दो हाथों में विधिपूर्वक मुखवस्त्रिका रजोहरण ग्रहरण करके कायोत्सर्ग में याद किये हुए अतिचारों को यथाक्रम गुरु के आगे प्रगट करे ||३३|| श्रालोचना १, प्रतिक्रमण २, मिश्र ३, विवेक ४, व्युत्सर्ग ५, तप ६, छेद ७, मूल ८, अनवस्थाप्य है, और पारांचित १०, ये उपर्युक्त दश प्रायश्चित्त हैं || ३४॥ अपने स्थान से प्रमाद के वश होकर परस्थान में गये हुए जीव का फिर उसी स्थान पर माना यह प्रतिक्रमण कहलाता हैं ||३५|| प्रतिक्रमण के ८ नाम निम्न प्रकार है- प्रतिक्रमण १ प्रतिचरणा २ परिहरणा ३ वारण ४ निर्वृत्ति ५ निन्दा ६ गर्हा ७ और शोधि ८ इस प्रकार प्रतिक्रमण के ८ प्रकार होते हैं । ।। ३६ ।।
SR No.002245
Book TitlePratikraman Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherMandavala Jain Sangh
Publication Year1973
Total Pages120
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, Vidhi, & Paryushan
File Size8 MB
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