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[५३ प्रतिक्रमण विधि संग्रह उस कायोत्सर्ग में क्रमशः दिनभर के अतिचारों को हृदय में धारण करके नमस्कारपूर्वक कायोत्सर्ग पारकर चतुर्विंशतिस्तव दण्डक को पढ़े ॥२२॥ · सूत्र, अर्थ, तत्त्व पर श्रद्धा करना, दर्शनमोह आदि त्रिक ४, रागत्रिक ७, और देवादि तत्वत्रिक १० तथा अदेवादि भक्ति त्रक १३, ज्ञानादित्रिक १६, तथा ज्ञानादि विराधनात्रिक १६, गुप्तित्रिक २२, दंडत्रिक २५ इस प्रकार मुखवस्त्र की प्रतिलेखना में क्रमशः चिन्तन करे ॥२३-२४॥
हास्य, रति, अरतिवर्जन ३, भय, शोक, दुगुञ्छा वर्जन ६, उपर्युक्त तीन-तीन दोष भुज युगल की प्रतिलेखना करता हुआ बोले और शीर्ष की प्रतिलेखना करता हुआ अप्रशस्त तीन लेश्याओं
का त्याग करे ॥२५॥ । ... मुख की प्रतिलेखना करता हुआ गौरव त्रिक का त्याग १२ करे - और हृदय की प्रतिलेखना करता हुआ शल्यत्रिक १५ का त्याग करे
और पीठ की प्रतिलेखना करता हुआ ४ कषायों का त्याग करे १६। दो चरणों की प्रतिलेखना करता हुआ छः जीव निकाय की रक्षा फरे २५ इस प्रकार शरीर प्रतिलेखना के समय बोलने के २५ बोलों का विधान हुआ।।२६।।
यद्यपि प्रतिलेखना करने का कारण जीव-रक्षा और जिन-आज्ञा है तथापि मन-मर्कट नियंत्रित करने के लिए मुनि लोग उक्त प्रकार से बोल कहते हैं । उठकर विद्वान् विधिपूर्वक गुरु का विनय करते हैं ओर बत्तीस दोष रहित और २५ आवश्यक विशुद्ध गुरु-वन्दन करते हैं । २७.२८।। .