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[३५ प्रतिक्रमण विधि संग्रह जिन चैत्य, यातधर्म, उपाश्रय, कायिकी (लघुनीति) उच्चार, (स्थंडिल जाना, मलोत्सर्ग) समिति (पंचसमिति,), द्वादश भावनायें, तीन गुप्तियां इन सभी कार्यों में विपरीत पाचरण करने पर अतिचार दोष होते हैं। इन बातों में दिन भर में जो कोई अतिचार हुआ हो उसका चिंतन करे। ऊपर चतुर्विंशतिस्तव पढ़कर मुहपत्ति प्रतिलेखना पूर्वक वन्दन करे । फिर अतिचारों की गुरु के सामने आलोचना करे। फिर बैठकर प्रतिक्रमण सूत्र पढ़ें। "अब्भुट्ठियोमि०" सूत्र से क्षमापन कर', फिर वंदन, गुरु सामीप्य निमित्तक वन्दन करे। चारित्रादि तीन की शुद्धि के लिये कायोग करे। कायोत्सर्ग में चतुर्विंशतिस्तव का चिन्तन करे । श्रुत देवतादिकी स्तुतियाँ कहे। मुहपत्ति प्रतिलेखना पूर्वक बन्दन कर बर्धमान तीन स्तुतियां बोले। शकस्तव पढ़कर प्रायश्चित का कायोत्सर्ग करे । कायोत्सर्ग पार कर स्वाध्याय करे ।
इस प्रकार देवसिक प्रतिक्रमण की विधि करना चाहिये । ... उपर्युक्त विधि के उपरान्त पाक्षिक अादि प्रतिक्रमणों में गुरु - सामीप्य पर्यन्त विधि करके मुहपत्ति प्रतिलेखना कर वन्दनक देकर
आलोचना करें । पाक्षिकसूत्र पढ़े । प्रत्येक खामणा करे फिर वन्दनापूर्वक सामायिक का पाठ बोलकर मूल तथा उत्तर गुणों की शुद्धि के लिए कायोत्सर्ग करे । कायोत्सर्ग पूरा कर ऊपर चतुर्विंशति स्तव पढ़े। बाद में मुहपत्ति प्रतिलेखना कर वन्दनक दे और पर्यन्त क्षामणा करे। उसके बाद शेष दैवसिक प्रतिक्रमण की विधि करे। पाक्षिक प्रतिक्रमण में बारह, चातुर्मासिक में बोस और सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में नमस्कार सहित चालीस उद्योतकरों का कायोत्सर्ग करे।
(भावदेवसूरिकृत यतिदिनचर्या पत्र ५५-५६)