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________________ ३४] प्रतिक्रमण विधि सग्रह * उज्जोय-पुत्ति-वंदण, मालोयण ठाणे कमण प सुनं। अब्भुटिठय-चियक्ख।मण, वंदणं अल्लयाबणियं ।।३६।। । चरणाइ त उस्सग्गा, उज्जो अवितण कमसो। सुप्रदेवयाइ थुईओ, पुनिच्चिय तत्थ तिन्नि थई ॥३७॥ सक्कत्थु पायच्छित्त-उस्सग्गो. सज्झायो, इयदिणस्स पडिकमणे। . तं पुण पक्खमाइसु, अल्लियावणियपज्जन्ते ।।३।। पोति चिय वंदण-मालोयणं च, पक्खिय सुत्तं सुत्तं च वंदणयं। ... पत्तेय खामणं च, वंदणाइ सामाइयं ॥३६।। : मूलोत्तर-गुण सोही, उस्सग्गुज्जोग्र, पुत्तिवंदणयं। - पज्जत खामणाणि य, पुणोवि पडिकमइ. देवसियं ।।४०॥ .. पक्खे बारस चउमासएसु वीसं वरिसिएसु उस्सग्गो। चालीसा सनमुक्काराइ उज्जोया ॥४॥ ___ (भावदेवसूारकृत यतिदिनचर्या पत्र ५५-५६) __ भावार्थ-कुछ दिन शेष रहने पर स्थंडिल प्रतिलेखना करके गोचरचर्या का प्रतिक्रमण करे । दिन भर में जो कुछ उपयोग शून्यता से अतिचार लगे हों उनका प्रायश्चित करे। प्रतिक्रमण उस समय प्रारम्भ करे जबकि सूर्य का प्राधा बिम्ब डूब गया हो। उस समय "करेमि भंते सामाइयं" यह सूत्र पढ़े और प्रतिक्रमण की समाप्ति में दो तीन तारिकाएं आकाश में दीखतो हों यह प्रतिक्रमण करने का समय है। प्रथम चैत्यवन्दन कर भगवान, आचार्य, उपाध्याय और मुनियों के क्षमाश्रमण देकर “सव्व सवि०" यह बोलकर "करेमि भंते सामाइयं" का पाठ बोलकर देवसिक अतिचार चिन्तन का कायोत्सर्ग करे। अतिचार चिन्तन में निम्नलिखित गाथा मन में बोल कर उसका अर्थ चिन्तन करे। शयन, आसन, आहार, पानी,
SR No.002245
Book TitlePratikraman Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherMandavala Jain Sangh
Publication Year1973
Total Pages120
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, Vidhi, & Paryushan
File Size8 MB
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