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________________ ३०] प्रतिक्रमण विधि संग्रह कायोत्सर्ग पूरा करके सिद्धस्तव को पढ़ें । "सिद्धाणं बुद्धाणं" इत्यादि। उसके बाद भवन देवी (शय्यादेवी) का कायोत्सर्ग करें, उसमें २७ . . . श्वासोच्छ वास पूरे करे। यह आवश्यक चूणि का अभिप्राय है, परन्तु आचरणा से ८ श्वासोच्छ वास पूरे करते हैं, फिर विधिपूर्वक बैठकर मुखवस्त्रिका और मस्तक पर्यन्त शरीर की प्रतिलेखना कर वन्दनक देते हैं। वन्दना कर आवश्यक पूरा करके निरतिचार होने पर भो पञ्चकल्याणक तप ग्रहण करें और पूर्व गृहीत . अभिग्रह गुरु के आगे निवेदन करें यदि अभिग्रह यथार्थ रूप में नहीं । पाले हों तो उनको विशुद्धि के निमित्त कायोत्सर्ग करें और फिर नये अभिग्रह ग्रहण करें। अभिग्रहरहित रहना नहीं चाहिए। . सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में आवश्यक करने के बाद पर्युषण कल्प पढ़ा जाता है । दिवस का कल्प पढ़ना नहीं कल्पता न श्रमणी, गृहस्थ, पार्श्वस्थादि के आगे पढ़ा जाता है । जिस क्षेत्र में कल्प दिवस में पढ़ा जाता है. जैसे-आन-दपुर में मूल चैत्य में दिवस को भी सर्वजन समक्ष कल्प पढ़ा जाता है, पर वहाँ भी साधु नहीं पढ़ता, साधु सुन सकता है, इसमें दोष नहीं, पढ़ता पाश्वस्थ है। पार्श्वस्थ अथवा अन्य पढ़ने वाले की गैर हाजरी में ग्राम स्वामी अथवा श्रावकों की प्रार्थना से दिवस में भी पढ़ा जाता है, वहां यह विधि है पर्युषणा के पूर्व ५वीं रात्रि से अपने उपाश्रय में देवसिक प्रतिक्रमण करने के बाद काल ग्रहण करें, काल शुद्ध हो अथवा अशुद्ध तो भी स्वाध्याय प्रस्थापित करके कल्प पढ़ा जाता है। इस प्रकार चार राशियों में करना । पर्युषणा की रात्रि में कल्प पढ़ने के बाद सर्व साधु कल्प समाप्ति निमित्तक कायोत्सर्ग करते हैं।
SR No.002245
Book TitlePratikraman Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherMandavala Jain Sangh
Publication Year1973
Total Pages120
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, Vidhi, & Paryushan
File Size8 MB
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