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________________ [२६ प्रतिक्रमण विधि संग्रह 'सांवत्सरिक कायोत्सर्ग में एक हजार आठ श्वासोच्छ वास पारमाण वाला कायात्सर्ग करें इस कायोत्सर्ग में ४० उद्योतकर और १ नमस्कार चितवन करते हैं। बाद में विधि से कायोत्सर्ग पूरा कर ऊपर चतुर्विशतिस्तव पढ़े, बाद में बैठकर मुखवस्त्रिका को और उसी से शरीर की प्रतिलेखना करके २ वन्दनक दें। बाद में पृथ्वीतल पर जानु हाथ और मस्तक रखकर एक साथ बोलें “इच्छामि खमासमणो अब्भुट्ठिओमि०" हे क्षमाश्रमण मैं खड़ा हुआ हूँ । पक्षभर के अपराधों को खमाने के लिये १५ दिन और १५ रात्रियों में जो अपराध हों उनको क्षमा कीजिये। यहाँ आचार्य कहते हैं-"मैं भी खमाता हूं"। इसके बाद सर्वसाधु आचार्य के प्रति पार क्षामनक (क्षमापनक) करके 'देवसिक' प्रतिक्रमण करे वहाँ क्षामरणम निमित्त वंदनक करके कहे 'इच्छामि खमासमणो अब्भुट्ठिओमि अभितर देवसियं खामे उ किंचि अंपत्तियं" इत्यादि। बाद में आचार्य के सामोप्य निमित्तक कृतिकर्म करें और सामायिक . सूत्र का उच्चारण करके चारित्र को विशुद्धि के लिये पचास श्वासो च्छ वास परिमाण कायोत्सर्ग करे । नमस्कार से कायोत्सर्ग को समाप्त कर दर्शन विशुद्धि के निमित्तक नामोत्कीर्तन करें "लोगस्स उज्जोअगरे." इत्यादि। उसके बाद दर्शन विशुद्धिनिनित पच्चीस श्वासोच्छ वास परिमाण कायोत्सर्ग करें। नमस्कार से कायोत्सर्ग समाप्त कर ज्ञानविशुद्धिनिमित्तक श्रुतज्ञानस्तव पढ़ें-"पुक्खर बरदी चड्ढे'' इत्यादि । उसके बाद श्रुतज्ञानविशुद्धिनिमितक २५ श्वासोच्छ वास परिमाण कायोत्सर्ग करें । बाद में नमस्कार पूर्वक
SR No.002245
Book TitlePratikraman Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherMandavala Jain Sangh
Publication Year1973
Total Pages120
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, Vidhi, & Paryushan
File Size8 MB
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