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प्रतिक्रमण विधि संग्रह
हम ऊपर श्रावश्यक नियुक्ति की गाथा लिख आये हैं, उस में आवश्यक श्रमण तथा श्रावक दोनों का अवश्य कर्त्तव्य है, यह सूचित किया है । चूर्णिगत प्रतिक्रमण विधि के निरूपण में श्रावक
का नाम न आया यह कुछ लेखक की भूल न थी पर साधु तथा श्रावक की क्रिया में नाम मात्र के ही फेरफार होते थे, उनकी क्रियाओं में किंचित् भेद है जो स्वयं समझा जा सके ऐसा जान कर "श्राद्ध प्रतिक्रमण विधि का " पृथक् प्रतिपादन नहीं किया गया । श्राद्ध प्रतिक्रमण सूत्र के कर्ता
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वर्तमान श्राद्ध प्रतिक्रमण सूत्र के कर्त्ता कौन थे ? इस प्रश्न के उत्तर में कोई कोई बताते हैं कि इसका कर्त्ता "ढंक" नामका कुम्हार श्रावक था । किन्तु हम इस कथन को महत्व नहीं दे सकते क्योंकि किसी भी प्राचीन ग्रन्थ या प्रकरण में इस विषय का उल्लेख नहीं है । इस सूत्र पर १० वीं शती के पूर्व की चूरिंग अथवा टीका भी उपलब्ध नहीं है, इससे सिद्ध होता है कि "आधुनिक श्राद्ध प्रतिक्रमण सूत्र वंदितु" अनुमानतः ७ वीं ८ वीं शती का सन्दर्भ होना चाहिये। कई लोग इस सूत्र की "तस्स धम्मस्स केवलियन्नत्तस्स प्रभुट्टि ओमि आराहणाए " इस गाथा की परवर्ती गाथाओं को अर्वाचीन और प्रक्षिप्त मानते हैं, किन्तु वस्तु स्थिति इस तरह की नहीं है, कारण कि इस सूत्र के प्राचीन से प्राचीन टीकाकारों ने भी अपनी टीकाओं में उक्त गाथाओं की व्याख्या की है ।
नये गच्छों की प्रतिक्रमण सामाचारियां-
ग्यारहवीं शताब्दी तक सब गच्छों में प्रतिक्रमण सामाचारी प्रायः एक थी । किसी तरह का उसमें भेद न था । बारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में उत्पन्न होने वाले गच्छों में भी अञ्चल गच्छ के