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प्रतिक्रमण विधि संग्रह
स्तब्ध १ प्रविद्ध २ अनाहत ३ परिपिडित ४ अंकुश ५ मत्स्योद्वर्त ६ कच्छपरिंगित ७ टोलगति ८ ढढ्ढ र ६ वेदिकाबद्ध १० मनोदुष्ट ११ रुद्ध १२ लज्जित १३ शठ १४ होलित १५ स्तैनिक १६ प्रत्यनीक १७ दृष्टादृष्ट १८ शृग १६ कर २० मोचन २१ ऊन २२ मूक २३ ।।११॥ __तप २४ मैत्री २५ गौरव २६ कारण २७ पर्यंचित २८ भय २६ आलिद अनालिद्ध ३० चूलिका ३१ और चुडलिया ३२, ये वन्दन के बत्तीस दोष हैं ॥१२॥
वन्दन में दो प्रवेश, यथाजात, दो नमन, द्वादशावर्त, एक निष्क्रमण, त्रिगुप्त और चतुश्शिर नमन ये २५ ॥१३ ।
अब सम्यक् अवनताङ्ग हो (शरीर नमाकर) दोनों हाथों में मुखवस्त्रिका और रजोहरण धारण कर कायोत्सर्ग में विन्तित अतिचारों
को यथाक्रम गुरु के सामने प्रकट करे ॥१४।। .. बाद में बैठकर सामायिक आदि प्रतिक्रमण सूत्र पढ़कर .."अब्भुडियोमि०" इत्यादि पढ़ता हुआ भाव और द्रव्य. से विधिपूर्वक . खड़ा होकर ॥१५॥ . फिर वन्दनक देकर पांच साधुओं में से तीनों को खमावे और
कृतिकर्म करके "आयरिय उवज्झाए" इत्यादि श्रद्धावान होकर तीन '. गाथाएँ पढ़े, यहाँ सामायिक और कायोत्सर्ग सूत्र पढ़कर कायोत्सर्ग
में स्थित होकर दो चतुर्विशतिस्तव चिन्तन करे, जिससे चारित्र के अतिचारों की शुद्धि हो ॥१६॥१७॥ __विधिपूर्वक कायोत्सर्ग पार कर सम्यक्त्वं शुद्धि के हेतु नामस्तव पढ़े और सर्वलोकगत अरहन्त प्रतिमाओं की आराधना के लिये कायोत्सर्ग करे। कायोत्सर्ग में "उद्योतकर" का चिन्तन करके कायोत्सर्ग पूरा करे ॥१८॥