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________________ जैन आचारसंहिता और पर्यावरणशुद्धि कर्मादान : १. अंगार कर्म - लकड़ी से कोयले बनाकर बेचने का व्यवसाय, २. वन कर्म - जंगलों को ठेके पर लेकर वृक्षों को काटने का व्यवसाय, शकट कर्म - अनेक प्रकार के गाड़ी, गाड़े, मोटर, ट्रक, रेलवे के इन्जन आदि वाहन बनाकर बेचना, ४. ७. १५. भाटक कर्म पशु तथा वाहन आदि किराये पर देना तथा बड़े बड़े मकान आदि बनवाकर किराये पर देना, - स्फोटकर्म - सुरंग आदि का निर्माण करने का व्यवसाय, दन्तवाणिज्य - हाथी दाँत, पशुओं के नख, रोम, सींग, आदि का व्यापार, लाक्षा वाणिज्य - लाख का व्यापार (लाख अनेक त्रस जीवोकी उत्पत्ति का कारण है, अत: इस व्यवसाय में अनन्त त्रस जीवों का घात होता है), ८. ९. रस वाणिज्य – मदिरा, सिरका आदि नशीली वस्तुएँ बनाना और बेचना, विष वाणिज्य - विष, विषैली वस्तुएँ, शस्त्रास्त्र का निर्माण और विक्रय, १०. केश वाणिज्यं बाल व बाल वाले प्राणीयों का व्यापार, ं ११. ं यन्त्र-पीड़न कर्म बड़े-बड़े यन्त्रों - मशीनों को चलाने का धन्धा, - १२. निर्लाच्छन कर्म - प्राणियों के अवयवों को छेदने और काटने का कार्य, १३. दावाग्निदान कर्म - वनों में आग लगाने का धन्धा, १४. सरोह्यदतड़ागशोषणता कर्म सरोवर, झील, तालाब आदि को सुखाने का कार्य, - ६५ - - असतीजनपोषणता कर्म कुलटा स्त्रियों-पुरुषों का पोषण, हिंसक प्राणियों (बिल्ली, कुत्ता आदि ) का पालन और समाज विरोधी तत्त्वों को संरक्षण देना आदि कार्य । आज जब हम पर्यावरण के संदर्भ में जंगलों का उजड़ना, खनीज संपत्ति और जल आदि की रिक्तताके बारे में सोचते हैं, तब आजीविका के ये पंद्रह अतिचारकी महत्ता हम समज सकते हैं। उन कर्मों का निषेध अनेक तरह से पर्यावरण
SR No.002239
Book TitleBauddh aur Jain Darshan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Vora
PublisherNiranjana Vora
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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