SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मोक्ष चिन्तन का सैद्धांतिक पक्ष धर्म के दो पक्ष है - विचार और आचार; सिद्धान्त और क्रिया-कर्म । आचार-दर्शनों में नैतिक जीवन का परम साध्य या परम श्रेय निर्वाण या आत्मा की उपलब्धि ही माना गया है। भारतीय परम्परा में मोक्ष, निर्वाण, परमात्मा की प्राप्ति आदि जीवन के चरम लक्ष्य या परम श्रेय के ही पर्यायवाची हैं। लेकिन हमें यह स्पष्ट जान लेना चाहिए कि भारतीय-परम्परा में मोक्ष या निर्वाण का तात्पर्य क्या है ? सामान्यतया मोक्ष या निर्वाण से हम किसी मरणोत्तर अवस्था की कल्पना करते हैं । लेकिन वास्तविक स्थिति इससे भिन्न है। जिसे सामान्यतया मोक्ष या निर्वाण कहा जाता है, वह तो उसका मरणोत्तर परिणाम मात्र है जो कि हमें जीवनमुक्ति के रूप में इसी जीवन में उपलब्ध हो जाता है । वस्तुतः नैतिक जीवन का साध्य यही.जीवन-मुक्ति है, जिसे व्यक्ति को यहीं और इसी जगत् में प्राप्त करना है । लोकोत्तर मुक्ति तो इसका अनिवार्य परिणाम है जो कि शरीर के छूट जाने पर प्राप्त हो जाती है। निर्वाण यो मोक्ष भारतीय नैतिकता का परम श्रेय है । दुःख से विमुक्ति को ही नैतिक जीवन का साध्य बताया गया है और दुःखों से पूर्ण विमुक्ति को ही निर्वाण यां मोक्ष कहा गया है। भारतीय आचारदर्शनों की दृष्टि में भौतिक एवं वस्तुगत सुख वास्तविक सुख नहीं हैं । सच्चा सुख वस्तुगत नहीं, अपितु आत्मगत है। उसकी उपलब्धि तृष्णा या आसक्ति के प्रहाण द्वारा सम्भव है। वीतराग, अनासक्त और वीततृष्ण होना उनकी दृष्टि वास्तविक सुख है - निर्वाण है और देह-क्षय है। इस तरह मोक्ष या मुक्ति के दो स्वरूप है - इस जीवन में ही प्राप्त होनेवाली मुक्ति - या निर्वाण - जिसका साधक अपने आप अनुभव करता है और दूसरी मरणोत्तर - जो जन्म-मृत्यु की परंपरा का क्षय सूचित करती है ।
SR No.002239
Book TitleBauddh aur Jain Darshan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Vora
PublisherNiranjana Vora
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy