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________________ ११२ बौद्ध और जैनदर्शन के विविध आयाम निदर्शन उसमें मिलता है । काव्य रचना के उपक्रम में कुछ अलंकार तो अपने आप आ जाते हैं। रसनिरुपण : शृंगार, वीर और शान्तरस का आलेखन यहाँ मुख्यतया हुआ है। ___ सर्ग में वीर और शृंगार का साथ साथ ही वर्णन है । युद्ध काल के वीरोचित प्रसंगो के आलेखन के बाद कविने योद्धाओं के साथ आयी. हुई उनकी पत्नियों के साथ जो शृंगार क्रिडायें की थीं उनका मादक वर्णन यहाँ हुआ है। कविने प्रत्येक क्रीडाओं का और इस समय के स्त्रीयों के मनोभावों का सूक्ष्म और. अलंकारो से तादृश निरुपण कीया है और प्राकृतिक सादृश्यों की भी सहाय ली है। स्त्रियों के अंगोपांगोके चित्रण में भी शंगार की झलक मिलती है। शांतरस को आलेखन अत्याधिक प्रसंगो में है। फिर भी दूसरे और बारहवें सर्गों में पार्श्वनाथ भगवान के चरित्र चित्रण के प्रसंग में सहज रीति से शांत रस का प्रागट्य होता है और तीर्थंकर भगवान के प्रति भक्तिभाव, प्रागट्य करने में प्रेरणादायी बनता है । छन्द का आयोजन : . महाकाव्य की शैली के अनुरुप प्रत्येक सर्ग की रचना अलग-अलग छन्द में की है और सर्गान्त में विविध छन्दों की योजना की है । पहले, सातवें और ग्यारहवें सर्गों में अनुष्टुप छन्द, शेष में दूसरे छन्दों का प्रयोग किया गया है। सप्तम सर्ग में व्यूहरचना के प्रसंग में मात्राच्युतक, विन्दुच्युतक, गूढचतुर्थक, अक्षरच्युतक, अक्षरव्यत्यय, निरोष्ठय आदि का अनुष्टुप छन्दों में ही प्रदर्शन किया गया है । छठे सर्ग में विविध शब्दों की छटा द्रष्टव्य है।। इस काव्य की भाषा माधुर्यपूर्ण है। कवि का भाषा पर असाधारण अधिकार है । वह मनोरम कल्पनाओं को साकार करने में पूर्णतया समर्थ है । कविने भाव और भाषा को सजाने के लिये अलंकारों का प्रयोग किया है। शब्दालंकारों में अनुप्रास का प्रयोग अधिक हुआ है। अर्थालंकारों में उपमा, उत्प्रेक्षा, अर्थान्तरन्यासादि का प्रयोग स्वाभाविक रूप से किया गया है। ___ अतः महाकाव्य के अनुरुप शैली में रचित यह कृति पार्श्वनाथ के जीवनचरित्र और काव्यकला की दृष्टि से नोंधपात्र है।
SR No.002239
Book TitleBauddh aur Jain Darshan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Vora
PublisherNiranjana Vora
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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