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________________ श्री वादिराजसूरिकृत पार्श्वनाथचरित का साहित्यिक मूल्यांकन भगवान पार्श्वनाथ स्वामी २३ वें तीर्थंकर हैं। उनका समग्र जीवन ही समता है और करुणा का मूर्तिमंत रुप था । अपने प्रति किये गये अत्याचार और निर्मम व्यवहार को विस्मृत कर अपने साथ वैमनस्य का तीव्र भाव रखने वालों के प्रति भी सहृदयता, सद्भावना और मंगल का भाव रखने के आदर्श का अनुपम चित्र भगवान का चरित प्रस्तुत करता है। भगवान पार्श्वनाथ के विषय में संस्कृत-प्राकृत भाषा में अनेक चारित्रकाव्य और अन्य साहित्य की रचना हुई है । संस्कृत भाषा में कवि वादिराजकृत सर्गबद्ध काव्य ‘पार्श्वनाथचरित' इस विषय में एक महत्त्वपूर्ण कृति है। वीतराग सर्वज्ञ पार्श्वनाथ के अनुपम चरित्र का, उनके पूर्वभवों के साथ कविने आलंकारिक भाषामें चरित्रचित्रण कीया है। कवि और रचना समय : ... 'पार्श्वनाथचरित' काव्य के अंत में ग्रंथप्रशस्ति में कविने अपनी आचार्य परंपरा और रचना समय के बारे में उल्लेख कीया है : । 'पार्श्वनाथचरित' काव्य के अंत में ग्रंथप्रशस्ति में कविने अपनी आचार्य परंपरा और रचना समय के बारे में उल्लेख कीया है : • शकाब्दे नगवाधिरघ्रगणने संवत्सरे क्रोधने मासे कार्तिकनाम्नि बुद्धिमहिते शुद्धे तृतीयादिने । . सिंहे पाति जयादिके वसुमती जैनीकथेयं मया निष्पत्तिं गमिता सती भवतु वः कल्याणनिष्पत्तये ॥
SR No.002239
Book TitleBauddh aur Jain Darshan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Vora
PublisherNiranjana Vora
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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