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पूर्व तथा इस भव की शुभ घटना ज्ञात नहीं होती, तब तक उसे कुछ निश्चय नहीं होता है । उसी समय ज्ञानरूप नेत्रों को धारण करनेवाले उसके मन्त्री उसके मन की बात जानकर आते हैं तथा उसे नमस्कार कर समयानुकूल योग्य वचन कहते हैं । वे कहते हैं-'हे देव ! नमस्कार करते हुए हम लोगों पर निर्मल दृष्टि डाल कर प्रसन्न कीजिए । भूत, भविष्य, वर्तमान की सब बातों को बतानेवाले हमारे वचन सुनिये ॥२०॥ हे स्वामिन् ! आज हम लोग धन्य हैं तथा हम लोगों का जीवन भी आज सफल हुआ, क्योंकि इस स्वर्ग में आपके जन्म लेने से हम लोग पवित्र हो गये हैं। हे देव ! आप प्रसन्न हों, आप की सदा जय हो, आप सदा जीते रहें तथा लक्ष्मी से सदा बढ़ते रहें । इस समय आप इस सम्पूर्ण स्वर्ग-राज्य के स्वामी बने हैं। हे देव ! आपके पुण्योदय से ही इस स्वर्ग में देवों के द्वारा पूज्य, भोग-उपभोगों से भरपूर तथा सुख की खानि यह विभूति आपको प्राप्त हुई है। यह 'अच्युत' नाम का सब से बड़ा स्वर्ग है, जो कि सब के मस्तक पर विराजमान है तथा आनन्द, ऋद्धि एवं कल्याणरूपी समुद्र को बढ़ाने के लिए चन्द्रमा के समान है। जब यहाँ इन्द्र उत्पन्न होता है, तब प्रतीन्द्र आदि दश प्रकार के सभी देव उस इन्द्र का महोत्सव मनाते हैं । यहाँ पर कल्पना करने मात्र से ही भोगों की प्राप्ति हो जाती है, यौवन सदा नवीन बना रहता है, लक्ष्मी सब के उत्तम तथा सदा एक-सी बनी रहती है एवं यहाँ के सुखों का वर्णन वाणी से सम्भव नहीं है । ये स्वर्ग के मनोहर विमान हैं । ये समस्त ऋद्धियों के भण्डार हैं एवं आपके चरणकमलों को नमस्कार करती हुई यह देवों की मण्डली है । ये रत्नों के बने हुए राजभवन हैं, जो दिव्य-देवांगनाओं से भरे हुए हैं, जिनकी कान्ति चन्द्रमा के समान है एवं जो बड़े ही मनोहर हैं । ये जल क्रीड़ा करने हेतु नदियाँ हैं तथा ये क्रीड़ा करने हेतु पर्वत हैं । ये सुन्दर देवियाँ हैं, जो अनेक प्रकार के रूप को धारण करनेवाली हैं, कामदेव के समान रूपवती हैं तथा अनेक प्रकार की लीला-रस प्रकट करने में तत्पर हैं । ये सुन्दरियाँ आप की आज्ञा की ही प्रतीक्षा कर रही हैं । यह दैदीप्यमान छत्र है, यह सिंहासन है, यह चमरों का समूह है एवं ये विजय-पताकायें हैं ॥२१०॥ अनेक सुन्दर देवियों से सेवित, ये अग्र महादेवियाँ हैं, जो कि लावण्यमयी सागर की लहरों के समान हैं तथा आपके लिए समर्पित हैं । यह मदोन्मत्त हाथियों की सेना है, यह पवन के समान द्रुत गतिवाले घोड़ों की सेना है, ये ऊँचे सोने के रथ हैं एवं यह पैदल चलनेवाली (पदाति) सेना है । यह सात प्रकार की सेना सात जगह बँट कर आप से प्रार्थना करती हुई, आप के चरण-कमलों को
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