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________________ FFFF विचित्र दृश्य क्या है, कुछ समझ में नहीं आता । यह इन्द्र का सभा-भवन है, जो कि बड़ी-बड़ी ऋद्धियों को धारण करनेवाले देवों से भरा है, विपुल शोभा से सुशोभित है, सात प्रकार की सेना से रक्षित है एवं अत्यन्त विशाल है । ये दिव्य कक्ष शोभायमान हैं, सुन्दरी देवियों से भरे हैं, ऊँचे हैं एवं सोने तथा रत्नों की किरणों से व्याप्त हैं । यह नगर महासुन्दर है, जो दिव्य वस्तुओं से.भरा हुआ है, मनोहर है, रलों के कोट एवं द्वारों से शोभायमान है एवं देव भी इसकी पूजा करते हैं । यहाँ की भूमि बड़ी ही मनोहर है, अनेक प्रकार के रत्नों से बनी हुई है, इसका स्पर्श भी सुख देनेवाला है, देवों से सुशोभित है एवं पुण्य की खानि के समान उत्तम जान पड़ती है। यह मनोहरं जिनालय है, जिसमें रत्नों के प्रतिबिम्ब विराजमान | हैं तथा जो उत्तम स्तुति गीतों तथा वाद्यों से धर्मरूपी सागर के समान सुन्दर लगता है । बहुविधि आनन्द देनेवाली ये देवियाँ हैं, जो रूप तथा लावण्य की खानि हैं । उनकी आकृति एवं काया सुन्दर है तथा वे मुझे देखकर अपनी प्रवृत्ति बता रही हैं । ये देव हैं, जो बड़ी-बड़ी ऋद्धियों को धारण करनेवाले हैं, अनुपम वस्त्र-आभूषणों से सुशोभित हैं एवं मुझे देख कर मस्तक झुका कर बड़ी विनय से नमस्कार कर रहे हैं । यहाँ सात प्रकार की सेना हैं-जो हाथी, घोड़े आदि से अपनी शोभा बढ़ा रही हैं, जिसके सात भेद हैं, एवं सब कार्यों को सिद्ध करनेवाली है ॥१९०॥ यहाँ मनोहर नृत्य हो रहा है, जिसे नृत्य-सेना कर रही है तथा जो गीत, बाजे तथा रस से भरपूर हैं तथा सब इन्द्रियों को सुख देनेवाले हैं । यहाँ मनोहर गीत हो रहे हैं, जिन्हें गन्धर्व जाति के देव गा रहे हैं, जिनमें से दिव्य स्वर निकल रहा है, जो सुनने योग्य है तथा कानों को सुख देनेवाला है । ये चैत्यवृक्ष शोभायमान हैं, जो बहुत ऊँचे हैं, जिन पर श्री जिनेन्द्रेदव की प्रतिमाएँ विराजमान हैं तथा जो कल्पवृक्ष के समान जान पड़ते हैं। ये मनोहर क्रीड़ा पर्वत हैं, जो सब दिशाओं को प्रकाशित कर रहे हैं । ये जल से भरी हुई बावड़ियाँ हैं, जिनमें रत्नों की सीढ़ियाँ लगी हुई हैं । ये निर्मल जल से भरे हुए तालाब हैं एवं ये बड़े-बड़े मनोहर वन हैं, जिनमें सब ऋतुओं के फूल-फल रहे हैं । मुझे देख कर ही ये लोग बहुत आनन्द मना रहे हैं । ये लोग पुण्य की मूर्ति, बड़े प्यारे, प्रशंसनीय, विनीत तथा अत्यन्त स्नेह करनेवाले जान पड़ते हैं । यह महान देश सुख की खानि के समान है, तीन लोक के नाथ भी इसकी सेवा करते हैं । यह अनेक महिमाओं से शोभायमान है तथा ऐसा जान पड़ता है, मानो समस्त संसार इसकी वन्दना करता है । इस प्रकार चिन्तवन करते हुए जब तक उस इन्द्र के मन में अपने F. PF
SR No.002238
Book TitleShantinath Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSakalkirti Acharya, Lalaram Shastri
PublisherVitrag Vani Trust
Publication Year2002
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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