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नमस्कार कर रही है । जिसे सब नमस्कार कर रहे हैं एवं जो समग्र लक्ष्मी (वैभव) का मन्दिर है एवं उत्तम है, ऐसा यह सम्पूर्ण स्वर्ग का माम्राज्य आप के पुण्योदय से आप के समक्ष प्रस्तुत है, कृपया आप इसे ग्रहण कीजिए।'
मन्त्रियों के ये वचन सुनते ही उस इन्द्र को पूर्वोत्तर सारी बातों को सूचित करनेवाला अवधिज्ञान प्रगट हो गया था । अपने अवधिज्ञान से उस इन्द्र ने अपने पूर्व भव की सब बातें जान ली थीं एवं वह उस भव में उपार्जन किये हुए धर्म का चिन्तवन करने लगा था वह विचार करने लगा था कि देखो, मैंने पहिले जन्म में अपनी शक्ति-भर बहुत दिनों तक घोर तपश्चरण किया था, जो कि इतर जीवों के द्वारा असम्भव था । मैंने पहिले संवेग, निर्वेग आदि अग्नि से विषयरूपी वन को जलाया था एवं ब्रह्मचर्य के प्रहार से कामदेवरूपी शत्रु को परास्त किया था । उत्तम, क्षमा, मार्दव आदि कुठारों से मैंने मायारूपी बेल को (जिसमें नरकादिक फल लगते हैं) तथा कषायरूपी वृक्ष भी काट डाले थे । राग, द्वेष आदि महाशत्रुओं को ध्यानरूपी खम्भे से बाँध दिया था तथा जीवित रहने को आकांक्षा रखनेवाले प्राणियों को 'अभय दान' दिया था ॥२२०॥ मैंने अपने पूर्व भव में चारित्र-रूपी शस्त्र द्वारा दुर्गति प्रदायक मोह-रूपी शत्रु को निहत किया था एवं मन ही शुद्धतापूर्वक तपश्चरण का पालन किया था। मैंने मन-वचन-काय की शुद्धि एवं
तपूर्वक सम्यग्दर्शन, सम्यकज्ञान, आदि चारों आराधनाओं का आराधन किया एवं अपने मन में तीनों लोक के नाथ सर्वज्ञदेव के स्वरूप को धारण किया था । मैंने पूर्व जन्म में आर्त-रौद्र आदि अशुभ ध्यान का नाश किया था एवं कर्म-रूपी ईंधन को जलाने के लिए अग्नि के समान धर्मध्यान आदि को धारण किया था । इस प्रकार मैंने पूर्व जन्म में महाधर्म धारण किया था; उसी ने मेरा दुर्गति से उद्धार कर मुझे इस स्वर्ग के साम्राज्य में स्थापित किया है । जीवों की राग-द्वेष रूपी अग्नि की ज्वाला कभी शान्त नहीं होती है। यदि वह शान्त होती है, तो सैकड़ों जन्मों के उपरान्त श्रेष्ठ चारित्र-रूपी जल के सींचने से ही शान्त होती है । परन्तु वह चारित्र तो इस स्वर्गलोक में सुलभ नहीं है, इसलिए अब मैं क्या करूँ ? इस स्वर्गलोक में देवों को केवल सम्यग्दर्शन प्राप्त करने की ही योग्यता है । इसलिए आत्म-धर्म की सिद्धि के लिए मुझे कल्याणकारी तत्वों का श्रद्धान हो एवं श्री जिनेन्द्र देव के चरण-कमलों में मेरी निश्चल भक्ति अटल हो । अब मुझे अकृत्रिम चैत्यालयों में तथा भगवान के पन्च-कल्याणकों में सब तरह के कल्याण