________________
.
ऐसे वे दोनों भाई संसार में देवों के समान सुशोभित होते थे । धर्म के प्रभाव से कठिन संग्राम में अनेक प्रकार की विजय प्राप्त होती है, धर्म के ही प्रभाव से तीनों लोकों में विराजनेवाली अनेक तरह की लब्धियाँ प्राप्त होती हैं तथा धर्म के ही प्रभाव से इन्द्र, तीर्थंकर, चक्रवर्ती आदि के अनेक प्रकार के सख प्राप्त होते हैं । संसार में ऐसा कौन-सा पदार्थ है, जो धर्मात्मा सज्जनों को प्राप्त न होता हो? यह एक धर्म ही मोक्ष का कारण है; इन्द्र चक्रवर्ती आदि के पद को देनेवाला है तथा सुख की खानि है । इसलिये हे विद्वानों ! शीघ्र ही इस धर्म का सेवन करो, व्यर्थ की बड़ी-बड़ी बातों तथा आडम्बरों से कोई लाभ नहीं होता । जो वृद्धावस्था आदि दोषों से रहित हैं, देव भी जिनकी सेवा करते हैं, जो सब तरह के परिग्रहों से रहित हैं, अन्तरंग-बहिरंग लक्ष्मी से सुशोभित हैं, गुणों के समूह तथा सुख के समुद्र हैं, प्रातिहार्यों से सुशोभित हैं, समस्त दोष जिन्होंने नष्टकर दिये हैं तथा जो पुण्यवान लोगों को शान्ति प्रदान करनेवाले हैं, ऐसे परम देव श्री शान्तिनाथ तीर्थंकर की मैं स्तुति करता हूँ।
इस प्रकार श्री शान्तिनाथ पुराण में देव एवं शलाका पुरुष-इन दो भवों का वर्णन करनेवाला छटठा अधिकार समाप्त हुआ ॥६॥
सातवाँ अधिकार जो धीर-वीर हैं, जिन्होंने समस्त शत्रुओं का नाश कर दिया है, जो महाराज (चक्रवर्ती राजा) हैं, भव्य जीवों को शान्ति देनेवाले हैं, स्वयं शान्त हैं तथा गुणों के सागर हैं, ऐसे परम देव श्री शान्तिनाथ तीर्थंकर को मैं उनके गुणों को प्राप्त करने के लिए नमस्कार करता हूँ ॥१॥ ' अथानन्तर-किसी एक दिन वे दोनों ही भाई विमान में बैठकर आकाश मार्ग से जा रहे थे; परन्तु पूजा का क्रम उल्लघन होने के भय से ही मानो उनके दोनों विमान अकस्मात् आकाश मार्ग में रुक गये । यह विमान किसी ने कील दिया है अथवा किस कारण से ये आगे नहीं जा रहे हैं-इस प्रकार विचार करते हुए वे चारों ओर देखने लगे, इतने में ही उन्हें सम्मुख में मान-स्तम्भ दिखलाई दिया । उन्हें ऊपर से बावड़ियाँ दिखाई दीं, चारों वन दिखाई दिए एवं देव, मनुष्य तथा मुनिराज आदि के संगम से भरी हुई समोशरण सभा दिखाई दी। अनेक तरह से अन्तरंग, बहिरंग लक्ष्मी एवं प्रातिहार्यों से वेष्टित तथा अनेक
44
444444