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उस कन्या को तो अपने छोटे भाई अनन्तवीर्य के साथ दूर भेज दिया एवं स्वयं लौट कर उन योद्धाओं से युद्ध करने लगे। वे योद्धा बहुत देर तक तो बलभद्र के साथ लड़ते रहे; परन्तु अन्त में सब को यमराज के घर जाना पड़ा । यह समाचार सुन कर राजा दमितारि को बड़ा क्रोध आया एवं उसने उनसे भी निपुण एवं शूरवीर योद्धाओं को युद्ध के लिए भेजा । जिस प्रकार समुद्र में पर्वत तक डूब जाता है, उसी प्रकार बलभद्र की तलवार की धाररूपी सागर में वे सब शत्रु डूब गये । इस बात को सुन कर राजा दमितारि को बहुत ही आश्चर्य हुआ व उसने सब मन्त्रियों को बुला कर कहा कि सामान्य नर्तकियों का इतना प्रभाव नहीं हो सकता, रहस्य कुछ अन्य ही हैं; तुम सब शीघ्र पता लगवाओ । उन मन्त्रियों ने बड़ी चेष्टा के उपरान्त सब रहस्य का पता लगाया एवं राजा को सब से अवगत करवा दिया । समस्त वृत्तान्त सुनकर दमितारि का हृदय क्रोधरूपी अग्नि से सन्तप्त हो गया तथा वह स्वयं सेना लेकर युद्ध करने के लिए निकला । बलभद्र (राजा अपराजित) अकेला ही था; इसलिये वह दमितारि का पहिले-पहल सामना न कर अपने विद्या तथा पराक्रम के प्रभाव से अन्य अनेक योद्धाओं को मारने लगा । यह देखकर यम के समान प्रचंड दमितारी अपराजित के सामने आया । दमितारि को अपने बड़े भाई के सामने जाता हुआ देखकर अनन्तवीर्य को भी क्रोध आ गया एवं वह स्वयं उसके सामने गया ॥१८०॥ राजा अपराजित भी उसके समीप पहुँचा तथा विद्याबल के मद से उद्धत राजा दमितारि को मदरहित किया । अनेक प्रकार से युद्ध कर अन्त में उसे रथ विहीन कर दिया । राजा दमितारि समझ गया कि अनन्तवीर्य को सहज में ही जीता नहीं जा सकता; वह धीर-वीर तथा बहुत पराक्रमी है । ऐसा समझ उसने चक्र हाथ में लिया एवं मारने के लिए उस पर चलाया । सब तरह के कल्याणों को सिद्ध करनेवाला वह चक्र अनन्तवीर्य के पुण्य-कर्म के उदय से उसकी तीन प्रदक्षिणा देकर उसके दाहिने हाथ पर आकर ठहर गया । अनन्तवीर्य ने उसी चक्र से राजा दमितारि को यमलोक भेज दिया तथा सेना के बाकी बचे हुए योद्धाओं को अपने अभय-दान दिया । पुण्य कर्म के उदय से जिसका पराक्रम प्रकट हो चुका है, ऐसे अनन्तवीर्य की स्तुति अनेक विद्याधर तथा भूमिगोचरी राजाओं ने आकर की तथा उसकी पूजा की । इस प्रकार धर्म के प्रभाव से जिन्हें विद्याएँ प्राप्त हुई हैं, जिन्होंने सब शत्रुओं को जीत लिया है, युद्ध में अपना पराक्रम प्रकट किया है, जो सब तरह के सुख के सागर हैं, प्रतापी हैं तथा मनुष्य, विद्याधर, देव, सब जिनकी सेवा करते हैं,
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