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में पहुँचे, वहाँ राजा दमितारि को देखा एवं उन दोनों ने राजभवन में प्रवेश किया। राजा दमितारि ने नर्तकी का भेष धारण किए हुए उन दोनों से बातचीत की, आदर-सत्कार से उन्हें सन्तुष्ट किया एवं दोनों को अपने वासभवन में भेज दिया । दूसरे दिन उन दोनों ने अपने मनोहर अंग, उपांग, विलास, रस एवं भाव आदि दिखला कर नृत्य करना प्रारम्भ किया । उन दोनों को देख कर राजा दमितारि बहुत ही प्रसन्न हुआ । उसने उन्हें योग्य पारितोषिक दिया एवं कहा कि ये सब उत्तम कलाएँ आप मेरी पुत्री कनकश्री (कनकमाला) को सिखलाइए । यह कह कर उसने अपनी पुत्री कनकधी को नृत्य-कला सीखने के लिए उन दोनों के पास भेज दिया । वे दोनों उस विद्याधर की पुत्री को यथायोग्य नृत्य-कला सिखलाने लगे। एक दिन वे दोनों ही भाई होनहार नारायण (अनन्तवीर्य अर्द्धचकी) के गुणों की गाथा से भरा हुआ काव्य, कानों को सुख देनेवाले मीठे स्वर में पढ़ने लगे । उस काव्य का अभिप्राय यह था-'जिसने कुल एवं बल आदि गुणों से संसार भर के सब राजाओं को जीत लिया है, जिसने अपने शरीर की शोभा से कामदेव को भी लज्जित कर दिया है, जो सब से श्रेष्ठ तरुण अवस्था को धारण करता है, चतुर स्त्रियों के विलास एवं सुन्दर कटाक्षों का केन्द्र है-ऐसे वे पृथ्वी, के स्वामी, प्रसिद्ध राजा अनन्तवीर्य तुम लोगों की रक्षा करें।' उनके इस काव्य को सुन कर राजपुत्री का मन काम-वासना पीड़ित हो गया एवं वह उनसे पूछने लगी-'जिसके विषय में मैं यह काव्य सुन रही हूँ, वह राजपुरुष कौन है ?' इसके उत्तर में वे कहने लगे कि जिस प्रकार पर्वत से महामणि प्रकट होती है, उसी प्रकार अनेक राजा-महाराजाओं से सेवित वह अनन्तवीर्य राजा स्तिमितसागर का पुत्र है एवं प्रभाकरी नगरी का शासन करनेवाला है । इस प्रकार अनन्तवीर्य के गुण, रूप एवं लावण्य का वर्णन सुनकर उस विद्याधर की पुत्री का प्रेम द्विगुणित हो गया एवं वह इस प्रकार कहने लगी ॥१७०॥ 'क्या मुझे अनन्तवीर्य के दर्शन हो सकते हैं ?' तब दूत भेषधारी अनन्तवीर्य ने कहा-'हाँ, अवश्य ही हो सकते हैं ।' यह कह कर उसने दूत का भेष हटा कर अपना साक्षात् रूप दिखला दिया । दूत के भेष में अनन्तवीर्य को देख कर कनकमाला मदन-ज्वर से पीड़ित हो गई एवं वे दोनों भेषधारी नर्तकियाँ उसे लेकर आकाश-मार्ग से उड़ गयीं । राजा दमितारि ने कंचुकी के मुख से जब कनकमाला के लप्त होने की बात सनी, तो उन दोनों दतों को पकड़ने के लिए अपने योद्धाओं को भेजा । योद्धाओं को अपनी तरफ आते देख कर उन दोनों में से बड़े भाई (बलभद्र) राजा अपराजित ने
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