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काँपता हुआ सीधे शिवमन्दिर नामक एक नगर में जा पहुँचा । वहाँ राजसभा में राजा दमितारि राज्य-सिंहासन पर बैठे थे । वह पापी नारद उनके समीप जा पहुँचा एवं उन्हें आशीर्वाद दिया । राजा दमितारि नारद को देख अपने आसन से उठकर सामने आये एवं नारद का आदर-सत्कार किया। फिर प्रणाम कर उन्हें सिंहासन कर बिठाया । तदनन्तर राजा ने कहा-'हे शुभदायक ! (अच्छा फल देनेवाले), आज आप मेरे घर किस कारण से पधारे हैं ?' इसके उत्तर में वह कुमार्गगामी नारद हिंसा-प्रेरक एवं न्याय-विमुख शब्दों में राजा दमितारि के नाश-सूचक वचन कहने लगा । वह कहने लगा कि प्रभाकरी नगरी में जो दोनों भाई राज्य करते हैं, वे बलभद्र-नारायण हैं; उनके समान कोई दूसरा मल्ल नहीं है एवं
वे अपनी सद्यः प्राप्त राज्यलक्ष्मी के मद में उन्मत्त हो रहे हैं। उनके घर पर दो नृत्य करनेवाली हैं, जो संसार | में सारभूत हैं एवं आपके ही योग्य हैं। उन्हें देखकर मैं आपको सब कहने के लिए शीघ्रता से आया हूँ
॥१५०॥ नारद की बातें सुनकर दमितारि के मन में लालसा उत्पन्न हुई एवं उसने उसी समय भेंट देकर सब समाचार को जानने के लिए दूत को भेजा । वत्सकावती देश में दिनों-दिन उन्नति के शिखर पर चढ़नेवाले उन दोनों भाईयों के पास वह दूत पहुँचा । संयोग से उस दिन राजा अपराजित एवं शुद्ध-हृदय युवराज अनन्तवीर्य मन्त्रियों के साथ प्रोषधोपवास करते हुए श्री जिनालय में विराजमान थे । दूत ने दोनों के सामने भेंट रखदी एवं कहने लगा-'हे देव ! शिवमन्दिर नगर में सब शत्रुओं को जीतनेवाला, तीन खण्ड पृथ्वी का स्वामी राजा दमितारि संसार में प्रसिद्ध है । उन्होंने मुझे आपके यहाँ की दोनों नर्तकियों को आप से माँग लाने के लिए भेजा है । उनको प्रसन्न करने के लिए आप की अपनी दोनों नर्तकियों को इसी समय मुझे दे देना चाहिये । उनके मिलने से राजा प्रसन्न होंगे एवं आपको भी उसका बहुत अच्छा फल मिलेगा।' यह सुन कर दोनों राजाओं ने दूत को तो अपने प्रासाद में भेज दिया एवं मन्त्रियों को बुला कर उनसे पूछा कि अब क्या करना चाहिये ? उसी समय पुण्य-कर्म के उदय से सब प्रकार के फल देनेवाले, तीसरे भव के (अमिततेज के भव के) विद्या देवता ने स्वयं आ कर उन दोनों के सामने कहा-'तुम घबराओ मत । अपना उद्देश्य सिद्ध करने के लिए अपनी इच्छानुसार कार्य में मुझे लगा दो।' विद्या देवता का यह परामर्श सुन कर उन्होंने राज्य का भार तो मन्त्रियों को सौंप दिया एवं स्वयं नर्तकियों का भेष धारण कर उस दूत के साथ चले गए ॥१६०॥ उन्होंने अपने भावी कार्यक्रम का पक्का विचार कर लिया । वे शिवमन्दिर नगर
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