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रूपवान था, न्यायमार्ग में तत्पर था, शूर-वीर था, धीर-वीर था एवं पुण्यवान था; इसलिए वह दूसरे विष्णु के समान जान पड़ता था । पुण्य कर्म के उदय से उस राजा के रूपवती, लावण्यमयी, सती, सुन्दरी तथा आभूषणों से सुशोभिता वसुन्धरा नाम की रानी थी। रविचूल नाम का देव नन्द्यावर्त्य विमान से चय कर उन दोनों के अपराजित नाम का पुत्र हुआ । मणिचूल नाम का देव अपने स्वस्तिक विमान से चय कर उसी राजा की अनुमती रानी के श्रीमान् अनन्तवीर्य नाम का पुत्र हुआ ॥ १२० ॥ वे दोनों ही भाई अनुक्रम से बढ़ते अस्त्र-शस्त्र आदि अब विद्याओं में निपुण हो गए एवं कुमार अवस्था को प्राप्त होकर कला, विज्ञान आदि सब शास्त्रों में सुशोभित हो गए । तदनन्तर वे दोनों ही राजपुत्र युवा अवस्था को प्राप्त हो गए। उनका शरीर पुण्य कर्म के उदय से रूप की आभा से सुशोभित हो गया था । वे दोनों ही भाई जम्बूद्वीप के दो चन्द्रमाओं के समान जान पड़ते थे, क्योंकि जिस प्रकार चन्द्रमा अपनी कान्ति से कुमुदिनियों के समूह को प्रफुल्लित करता है, उसी प्रकार वे दोनों भाई भी अपनी कान्ति से कुवलय अर्थात् पृथ्वी-मंडल को प्रसन्न करते थे । चन्द्रमा जिस प्रकार तृष्णा एवं सन्ताप को दूर करता है, उसी प्रकार वे दोनों भाई भी तृष्णा एवं सन्ताप को दूर करते थे । जिस प्रकार चन्द्रमा अनेक कलाओं को धारण करता है, उसी प्रकार वे दोनों भाई भी अनेक कलाओं को धारण करते थे । अर्थात् यों कहना चाहिए कि वे दोनों भाई सूर्य के समान थे; क्योंकि सूर्य जिस प्रकार पद्म अर्थात् कमलों को प्रफुल्लित करता है, उसका शरीर (पिंड) दैदीप्यमान रहता है, वह अन्धकार का नाश करता है, सदा उदयावस्था में रहता है एवं प्रतापी होता है; उसी प्रकार दोनों भाई भी पद्मा अर्थात् लक्ष्मी को आनन्दित करनेवाले थे । उनके शरीर दैदीप्यमान थे, पाप-रूप अन्ध कार का नाश करनेवाले थे, सदा बढ़ते थे एवं बड़े प्रतापी थे। उनके वक्षःस्थल पर हार शोभा देता था, मस्तक पर मुकुट शोभायमान था, कानों में कुण्डल थे तथा समस्त शरीर आभूषणों से शोभित था । वे दोनों धीर-वीर भाई दिव्य वस्त्र पहिने रहते थे, अपने अतिशय रूप से कामदेव को भी जीतते थे एवं अपनी विभूति से लोगों को बतला रहे थे कि धर्म का फल कैसा होता है ? वे दोनों भाई न्याय मार्ग में तत्पर थे, चतुर थे राजनीति की प्रवृत्ति करनेवाले थे, सब शत्रुओं को वश में करनेवाले थे, पुण्यवान थे एवं सत्यवक्ता थे । वे जिन-धर्म में लीन थे; दान, जिन-पूजा आदि करने में तत्पर थे, ज्ञान के अभ्यास में लगे रहते थे एवं देव तथा गुरुओं के चरणाविन्दों की सदा सेवा किया करते थे। उन दोनों भाईयों को अनेक
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