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शुद्ध रत्नमय शिला संपुट के भीतर जन्म लिया था ॥८०॥ दो घड़ी में ही वे यौवन अवस्था को प्राप्त हो गये थे, आठ ऋद्धियों को प्राप्त कर चुके थे तथा उनके तीनों ज्ञानरूपी नेत्र खुल गये थे। वे दोनों ही देव पुष्पमाला, वस्त्र, आभूषण पहने हुए थे, सुन्दर थे तथा दिव्य रूपवान थे । जब उन्होंने पुण्य-कर्म के उदय से अपने को देव पर्याय में उत्पन्न जाना, तब कल्पवृक्षों से प्राप्त होनेवाली अनेक तरह की पूजा की सामग्री लेकर वहाँ के जिनालय में जाकर भक्तिपूर्वक भगवान की पूजा की । तदनन्तर उन्होंने पुण्यकर्म के उदय से प्राप्त अनेक देवियों को तथा विमान आदि से भरी हुई ऋद्धियों को ग्रहण किया। इस प्रकार वे धर्म के प्रभाव से गाजे, बाजे, नृत्य आदि से होनेवाले तथा देवियों के गुणों से प्रगट होनेवाले अनेक भोगों का उपभोग करते थे । उनका शरीर साढ़े तीन हाथ का था, उन्हें विक्रिया ऋद्धि प्राप्त थी तथा मोक्ष प्राप्त करने तक के हेतु सर्व सिद्धिदायक बीस अवधिज्ञान प्राप्त थे । उनकी आयु बीस सागर की थी एवं हजार वर्ष बाद वे अमृत के समान मानसिक आहार लेते थे। वे बीस पक्ष के बाद उच्छ्वास लेते थे तथा चित्त | में देवांगनाओं के स्मरण-मात्र से ही वे काम-सुख से तृप्त हो जाते थे । वे दोनों देव बड़ी विभूति के साथ | तीर्थंकरों के पन्च-कल्याणकों में जाकर भक्ति से उनकी पूजा करते थे । वे दोनों ही देव पुण्योपार्जन के लिए देवलोक, मनुष्यलोक तथा तिर्यन्चलोक में जाकर वहाँ स्थित अकृत्रिम जिन-प्रतिबिम्बों की पूजा किया करते थे ॥१०॥ स्वर्ग-मोक्ष के सुख प्राप्त करने के लिए वे देव गणधरों के तथा धर्मोपदेश देनेवाले मुनियों के चरण-कमलों को नमस्कार किया करते थे । धर्म-सेवन करने के लिए वे अपने परिवार के साथ श्री तीर्थंकर के समवशरण में जाकर उनकी उपमा-रहित दिव्य-ध्वनि सुनते थे । इस प्रकार वे प्रतिक्षण अनेक तरह के पुण्योपार्जन किया करते थे तथा सुखसांगर में निमग्न होकर अनेक तरह के भोग भोगते रहते थे । जो देवियों के समूह के बीच बैठ कर पुण्य से प्राप्त हुए भोगों में लीन हो रहे हैं तथा जिनके परिणाम शुभ हैं, ऐसे उन दोनों देवों को समय का व्यतीत होना भी ज्ञात नहीं होता था । अथानन्तर-इसी जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में वत्सकावती नाम का एक मनोहर देश है । उस देश में ध्यानमग्न मुनियों से सुशोभित बहुत-से वन हैं तथा धर्मात्मा लोगों से भरे हुए बहुत-से गाँव, खेट, नगर हैं । नगर के बहिर्भाग में कायोत्सर्ग धारण किए हुए अनेक मुनि विराजमान हैं। वहाँ स्वच्छ जल से भरी तथा पक्षियों के मनोहर शब्द से गुन्जायमान कितनी ही नदियाँ बहती रहती हैं । वहाँ पर निर्मल जल से भरे हुए तथा राजहंसों से
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