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शोक करनेवाला; क्रोधी, अभिमानी, दुर्बल, दुश्वर (बुरी आवाजवाला), अशुभ, क्रूर तथा पाप-कर्म करनेवाला प्राणी कभी दिखाई नहीं देता ॥१२०॥ वहाँ पर न तो किसी को इष्ट-वियोग होता है, न अनिष्ट-संयोग होता है; न किसी का शील भंग होता है, न कोई अनाचार होता है। विषाद, ग्लानि, निन्द्रा, तन्द्रा (अलस) पलक से पलक लगना आदि कुछ नहीं होता । न शरीर सम्बन्धी मलमूत्र होता है, न लार टपकती है एवं न स्वेद (पसीना) बहता है। वहाँ पर सब भोगभूमियाँ उदीयमान सूर्य के समान । सब पसीना-रहित, रज-रहित उत्तम एवं हार, कंकण, केयूर, मुकुट आदि आभूषणों से शोभायमान रहते
| श्री हैं। सब के भोगोपभोग की सामग्री एक-सी होती है, सब का सुख एक-सा होता है, सब सुन्दर होते हैं एवं सब के वज्रवृषभ-नाराच-संहनन होता है। सबका स्वर मीठा होता है, देखने में सब मनोहर होते हैं, मन्दकषायी होते हैं, रूपवान होते हैं, शुभ होते हैं । सब दयालु एवं कोमल-हृदय होते है तथा| समचतुरस्रसंस्थान वाले होते हैं। वहाँ के प्राणी कला, विज्ञान, चातुर्य आदि गुणों से सुशोभित होते हैं तथा शुभ-कर्म के उदय से ही वे सब आर्य स्वभाव से ही भद्र एवं उत्तम होते हैं । वहाँ पर उत्पन्न होने के बाद प्राणी सात दिन तक अपना मुंह ऊपर को किये हुए पड़े रहते हैं एवं अपने अंगूठे से उत्पन्न दिव्य रस का पान किया करते हैं । मुनीश्वर उनकी आगे की दशा का वर्णन करते हुए बतलाते हैं कि अगले सात दिनों तक वे दम्पति पृथ्वी पर रेंगते हैं; फिर तीसरे सप्ताह में वे उठ खड़े होते हैं, मीठे शब्द करते हैं एवं पृथ्वी पर लीलापूर्वक गिरते-पड़ते चलना सीखते हैं । उसके बाद चौथे सप्ताह में पैरों को स्थिर रखते हैं एवं फिर पाँचवें सप्ताह में कला, ज्ञान आदि गुणों से परिपूर्ण हो जाते हैं ॥१३०॥ छठवें सप्ताह में पूर्ण यौवन प्राप्त हो जाते हैं एवं वस्त्र-आभूषण आदि से सुशोभित वे भोगभूमियाँ बड़ी ही अच्छी जान पड़ती हैं । वे गर्भ में भी नौ महीने तक रनों के बने हुए घर के समान रहते है। एवं फिर दान के फल से बड़े सुख से उनका जन्म होता है। जब वे दोनों (दम्पति) उत्पन्न होते हैं, तब माता-पिता की मृत्यु हो जाती है । मरते समय माता को छींक आती है एवं पिता जम्भाई लेता है । इस प्रकार उनकी मृत्यु सुख से होती है । वहाँ पर जीवों के भाई-पुत्र आदि का संकल्प नहीं होता, उनके केवल पति-पत्नी का ही सम्बन्ध होता है, उनके अन्य किसी सम्बन्ध की कल्पना नहीं होती। उनके शरीर की ऊँचाई तीन कोस होती है, वे सम्पूर्ण लक्षणों से. सुशोभित होते हैं एवं बुढ़ापा, रोग आदि उनके कुछ नहीं होता । श्री जिनेन्द्रदेव ने उन आर्यों की आयु तीन