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॥५०॥ अथानन्तर-कौशाम्बी नगर में पुण्य कर्म के उदय से महाबल नाम का राजा राज्य करता था; उसकी रानी का नाम श्रीमती था तथा उन दोनों के श्रीकान्ता नाम की पुत्री थी । रूप-लावण्य आदि गुणों से विभूषित श्रीकान्ता का विवाह पुण्य कर्म के उदय से श्रीषेण के पुत्र इन्द्र के साथ विधिपूर्वक हुआ था । राजा महाबल के अनन्तमती नाम की एक विलासिनी थी, जो कि रूपवती एवं गुणवती थी । राजा ने स्नेह-भेंट स्वरूप उसे श्रीकान्ता को दे दिया । किन्तु अनन्तमती रूपवान उपेन्द्र पर आसक्त हो उसके साथ काम-भोग आदि करके भ्रष्टा हो गई । उस विलासिनीके लिए वे दोनों भाई परस्पर युद्ध करने लगे । आचार्य कहते हैं-देखो, मनुष्यों के ऐसे भोगादि सुखों को धिक्कार है, जिसके लिए भाई-भाई में परस्पर शां युद्ध हो जाए । इन बातों को सुनकर राजा श्रीषेण को अपनी आज्ञा भंग होने का बहुत दुःख हुआ तथा पाप-कर्म के उदय से वह विषफल को सूंघकर मर गया । तत्पश्चात् वह धातकीखंड द्वीप में पूर्वमेरु के ि उत्तर दिशा की ओर उत्तर कुरु नाम की सुख देनेवाली भोगभूमि में लावण्य आदि से सुशोभित आर्य उत्पन्न ना हुआ । सिंहनिन्दिता रानी भी उसी विषफल को सूंघ कर मर गई एवं प्रदत्त दान से उत्पन्न हुए धर्म के प्रभाव
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उसी भोगभूमि में उसी आर्य की आर्या उत्पन्न हुई । दूसरी रानी अनिन्दिता की मृत्यु भी उसी प्रकार हुई तथा वह स्त्रीलिंग छेद कर महापुण्य के उदय से उसी भोगभूमि में आर्य हुई । वह सत्यभामा ब्राह्मणी भी पु प्राणों को त्याग कर धर्म के प्रभाव से उस अनिन्दिता के यहाँ आर्या हुई ॥६०॥ आचार्य कहते हैं- 'देखो,
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अपमृत्यु वा अपघात मर कर भी, केवल उस महादान के फल से ही, वे लोग शुभगति को प्राप्त हुए थे; इसलिए यह कहना उचित होगा कि दान देना उत्तम है । इधर वे दोनों भाई युद्ध कर रहे थे; परन्तु पूर्व जन्म के स्नेह के कारण मणिकुण्डल नामक विद्याधर ने आकर उनको युद्ध से विरत किया । वह कहने लगा- हे राजकुमारों ! मैं एक कथा कहता हूँ, तुम अपना ईर्ष्याभाव त्याग कर तथा चित्त को शान्त कर सुनो, क्योंकि वह कथा तुम दोनों का हित करनेवाली है । देखो, धातकीखण्डद्वीप में पूर्वमेरु सम्बन्धी पूर्व विदेहक्षेत्र है, जो कि सद्धर्म एवं तीर्थंकर आदि से सुशोभित है। उस क्षेत्र के पुष्कलावती देश में एक विराट रूपाचालपर्वत शोभायमान है, जो कि ऊँचा है, जिन चैत्यालयों से विभूषित है एवं दूसरे मेरु के समान जान पड़ता है । उस पर्वत की दक्षिण श्रेणी में आदित्याभ नाम काएक सुन्दर नगर है तथा उसमें पुण्य-कर्म के उदय से कुण्डलों से सुशोभित सुकुण्डली नाम का एक राजा राज्य करता है। उसकी रानी का नाम
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