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________________ 944 में रणीजड़ अपने दोनों पुत्रों को वेद पढ़ाया करता था, तब उसे सुनकर वह कपिल भी वेद याद कर लेता | था । कपिल के वेद पढ़ने के रहस्य को जानकर उस ब्राह्मण ने उसे जबर्दस्ती घर से निकाल दिया; परन्तु वह कपिल बाहर जाकर भी शीघ्र ही वेद-वेदांग का पारगामी हो गया । अथानन्तर-इसी जम्बूद्वीप के मलय । देश में रत्तसन्चयपुर नाम का नगर है, वहाँ पर अपने पूर्वोपार्जित पुण्य-कर्म के उदय से श्रीषेण नाम का राजा राज्य करता था । वह राजा कान्तिवान था, अत्यन्त रूपवान था, नीति-मार्ग की प्रवृत्ति करनेवाला था, शूर था, धीर-वीर था, राजाओं के द्वारा पूज्य था, शत्रुओं को जीतनेवाला एवं गुणों का समुद्र था । | वह जिन-धर्म में अपना चित्त लगाता था, शास्त्रों का जानकार था, सत्यनिष्ठ था, उसे किसी तरह की कोई बाधा नहीं थी कोई रोग नहीं था एवं वह सुखसागर में निमग्न था । वह सदा पात्र-दान करता था, श्री जिनेन्द्रदेव की पूजा करने में तत्पर रहता था, गुरु में भक्ति रखता था, सदाचारी था, विवेकी था; पुण्यवान था एवं उत्तम था । वह हार, कुण्डल, केयूर, मुकुट आदि आभरणों से सुसज्जित था एवं दिव्य वस्त्रों से विभूषित था । इसलिए वह अपने रूप से कामदेव को भी जीतता था ॥१०॥ इस प्रकार राज्य-लक्ष्मी को वश में करनेवाला श्रीषेण राजा अपने शुभ-कर्म के उदय से न्यायपूर्वक अपनी प्रजा का पालन करता था । उस श्रीषेण के पुण्य-कर्म के उदय से रूपवती, लावण्यमयी एवं शुभ लक्षणों से सुशोभित सिंहनिन्दिता एवं अनिन्दिता नाम की दो रानियाँ थीं । सिंहनिन्दिता के शुभ-कर्म के उदय से चन्द्रमा के समान अत्यन्त रूपवान एवं शुभ लक्षणों से सुशोभित इन्द्र नाम का पुत्र हुआ था । धर्म के प्रभाव से अनिन्दिता के रूपवान, गुणवान एवं ज्ञान-विज्ञान का पारगामी उपेन्द्र नाम का पुत्र हुआ था । जिस प्रकार पापों को नाश करनेवाले मुनिराज सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक्चारित्र से सुशोभित होते हैं, उसी प्रकार शत्रुओं को जीतनेवाला वह राजा उन दोनों सुन्दर पुत्रों से शोभायमान होता था। उसी नगर में सात्यकी नाम का एक ब्राह्मण रहता था; उसकी ब्राह्मणी का नाम जम्बू था एवं उसके गुणों से सुशोभित सत्यभामा नाम की पुत्री थी । पहिले कहा हुआ धरणीजड़ का दासी-पुत्र कपिल जनेऊ धारण कर ब्राह्मण के रूप में उसी रत्नसन्चयपुर नगर में आया । उसे रूपवान एवं वेद का पारगामी देखकर सात्यकी उसे अपने घर ले गया एवं अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह उससे कर दिया । रात्रि में सत्यभामा को जब कपिल की नीच चेष्टाओं का पता चला-तब यह अच्छे कुल का नहीं है इस चिन्ता ने उसे आ घेरा । वह सोचने लगी कि FFFF
SR No.002238
Book TitleShantinath Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSakalkirti Acharya, Lalaram Shastri
PublisherVitrag Vani Trust
Publication Year2002
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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