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ने मेरी छोटी बहिन सुतारा का किस कारण से हरण किया ? कृपया आप मुझे बताइये । मैंने पहिले जन्म में ऐसा कौन-सा उत्तम पुण्य-कर्म किया था, जिससे मैं विद्याधरों का स्वामी हुआ तथा मझे ऐसी महाविभूति प्राप्त हई ? श्रीविजय पर मेरा अत्यधिक प्रेम किस कारण से है ? हे प्रभो ! मेरे हित के लिए कृपा कर इन तीनों प्रश्नों का उत्तर दीजिये ।' इस प्रकार जो भगवान के वचनों में अनुरक्त है. सम्यग्दर्शनरूपी रत्न का अद्वितीय पात्र है, परम धर्म का जाननेवाला है, ज्ञान-विज्ञान में चतुर है, अणुव्रतरूपी गुणों से शोभायमान है तथा सब विद्याधर जिसके चरणकमलों को नमस्कार करते हैं ऐसे अमिततेज विद्याधर ने श्री जिनेन्द्र भगवान से इन उत्तम प्रश्नों को पछा । तीनों लोक जिनके उत्तम चरण-कमलों की पूजा करते हैं, जो अत्यन्त निर्मल हैं, संसार के समस्त तत्वों को प्रकाशित करने के लिए दीपक के समान हैं, सबका हित करनेवाले हैं, अनन्तज्ञान आदि अनेक गुणरत्नों के समुद्र हैं, मुक्तिरूपी | रमा के उत्तम वर हैं तथा संसाररूपी समुद्र से पार करानेवाले हैं, ऐसे श्री जिनेन्द्रदेव सब का उपकार करने
के लिए भव्य अमिततेज की पूर्वभव सम्बन्धी धर्म-कथा कहने लगे । जिन्होंने कर्मरूपी समस्त शत्रुओं को नष्ट कर दिया है, जो पाँचवें चक्रवर्ती हैं जिन्होंने कामदेव का सारा अभिमान जीत लिया है, तथापि जो कामदेव के समान हैं, अत्यन्त रूपवान हैं एवं समस्त गूढ़ तत्वों को जाननेवाले हैं, ऐसे सोलहवें तीर्थंकर श्री शान्तिनाथ जिनेन्द्रदेव अपनी कीर्ति से तीनों लोकों में शोभायमान होते रहें। इस प्रकार श्री शान्तिनाथ पुराण में अमिततेज के द्वारा धर्म-सम्बन्धी प्रश्न पूछनेवाला चौथा अधिकार समाप्त हुआ ॥४॥
पाँचवाँ अधिकार अपने आरम्भ किए हुए कार्य को सुसम्पन्न करने के लिए तीनों लोक जिसकी सेवा करते हैं, विद्वान लोग जिसकी पूजा करते हैं एवं जो सब जीवों का हित करनेवाली है, ऐसी जिनवाणी को मैं नमस्कार करता हूँ ॥१॥ श्री जिनेंद्रदेव अमिततेज के पूर्व भव कहने लगे-'इसी जम्बूद्वीप के मंगलादेश की अलका नगरी में धरणीजड़ नाम का एक ब्राह्मण रहता था। उसकी ब्राह्मणी का नाम अग्निला था। उनके दो पुत्र उत्पन्न हुए थे-एक का नाम इन्द्रभूति एवं दूसरे का नाम अग्निभूति था । वे दोनों भाई मिथ्याज्ञानी थे। उसी धरणीजड़ के अशुभ-कर्म के उदय से कपिल नाम का एक दासी पुत्र था, जो तीक्ष्ण बुद्धि था । जब ध
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