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________________ FFFFF पर उसने सुतारा के हरण-जनित स्त्री-वियोग से होनेवाला कष्ट आदि का सब वृत्तान्त कह सुनाया। इसके बाद उसने माता के सामने राजा सम्भिन्न की प्रशंसा भी अनेक प्रकार से की । ठीक ही है, क्योंकि विद्वान लोग किसी के उपकार को कभी भूलते नहीं हैं। स्वयंप्रभा ने अपने छोटे पुत्र विजयभद्र को तो नगर की रक्षा का भार सौपा एवं स्वयं बडे पत्र श्रीविजय के साथ आकाश-मार्ग से रथनूपुर नगर की ओर प्रस्थान किया। अपने देश के दूतों से अमिततेज ने भी उसके आने का समाचार जान लिया एवं वह उसे सम्मान देने के लिए उसके सामने आया । अमितेज ने बड़ी विभूति के साथ उसे नगर में प्रवेश कराया एवं स्नान-भोजन आदि से उसका बहुत ही अच्छा आदर-सत्कार किया ! तदनन्तर माँ-बेटे ने अर्थात् स्वयंप्रभा एवं श्रीविजय ने अमिततेज के सामने पाप-कर्म के उदय से होनेवाले सुतारा के हरण आदि का सब समाचार कह सुनाया । यह सुनकर अमिततेज ने सुतारा को मुक्त कर देने के लिए अशनिघोष विद्याधर के पास मरीच नाम का एक दूत शीघ्र भेजा । ॥५०॥ दूत राजा अशनिघोष के पास गया एवं उससे सुतारा की मुक्ति की माँग की । परन्तु उस पापी ने दूत से बहुत-ही अपशब्द कहे । इसलिए वह दूत शीघ्र वहाँ से चला आया एवं अपने स्वामी के पास आकर जो कुछ दुर्व्यवहार उसके साथ हुआ था, सब ज्यों-का-त्यों कह सुनाया। तब राजा अमिततेज ने मन्त्रियों के साथ विचार-विमर्श किया एवं अपनी विद्या एवं सेना की सहायता से उस मदोन्मत्त विद्याधर के नाश करने की तैयारी कर ली। अमिततेज विद्याधर ने श्रीविजय को बन्धमोचनी (बन्ध को छुड़ानेवाली), प्रहरणवारणी (शस्त्र प्रहार को रोकनेवाली) एवं युद्धवीर्या (युद्ध में पराक्रम प्रगट करनेवाली)-ये तीन विद्याएँ प्रदान की । अमितेज ने रश्मिवेग, सुवेग आदि अपने पाँच-सौ पुत्रों के साथ पोदनपुर नगर के राजा श्रीविजय को शत्रु के सामने भेजा तथा वह स्वयं बड़े पुत्र सहस्ररश्मि के साथ सब विद्याओं के सिद्ध करने के स्थान ह्रीमन्त पर्वत पर जा पहुँचा । वहाँ पर वह अपने पुत्र के साथ संजयन्त नाम के महाचैत्यालय में सब विद्याओं का नाश करनेवाली 'महाज्वाला' नाम की विद्या सिद्ध करने लगा । इधर अशनिघोष ने रश्मिवेग आदि के साथ श्रीविजय का आगमन सुनकर हठपूर्वक युद्ध के लिए अपने पुत्रों को भेज दिया । सुघोष, शतघोष, सहस्रघोष आदि वे सब योद्धा श्रीविजय के साथ युद्ध करने लगे । वहाँ पर उन दोनों सेनाओं का बड़ा भारी युद्ध हुआ, जो कि अत्यन्त आश्चर्यजनक था एवं अपार जीवंराशि का क्षय करनेवाला था ॥१०॥ EFFEE
SR No.002238
Book TitleShantinath Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSakalkirti Acharya, Lalaram Shastri
PublisherVitrag Vani Trust
Publication Year2002
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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