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हूँ । यदि तुझमें सामर्थ्य है तो आकर इसे छुड़ा ले जा ।' उसकी यह बात सुनकर मैंने अपने मन में विचारा कि यह पापी मेरे स्वामी की बहिन को हरकर ले जा रहा है । ऐसे समय में मुझे साधारण मनुष्यों के समान उसके सामने नहीं जाना चाहिये, किन्तु इस दुष्ट को मारकर सुतारा का उद्धार करना चाहिये । यही सोचकर मैं उसके समीप गया । जब मैंने उसके साथ युद्ध करना प्रारम्भ किया, तब सुतारा ने कहा'भाई ! तुम युद्ध मत करो, बल्कि इसी समय ज्योतिर्वन में जाओ एवं शोक-रूपी अग्नि से दग्ध राजा श्रीविजय से मेरी अवस्था का सब समाचार कह सुनाओ ।'॥३०॥ हे राजन् ! इस प्रकार आपकी रानी के द्वारा भेजे हुए हम यहाँ आये हैं । आपके शत्रु की भेजी हुई बैताली देवी को मैंने मार भगाया है।" राजा सम्भिन्न का वृत्तान्त सुनकर श्रीविजय ने कहा-'हे मित्र ! अब आप शीघ्र ही जाकर यह सब समाचार मेरी माता स्वयंप्रभा एवं अनुज से कह सुनाइये ।' तब राजा सम्भिन्न ने अपने पुत्र द्वीपशिख को पोदनपुर भेज दिया । इधर पोदनपुर में अनेक उपद्रव हुए थे। उन्हें देखकर अमोघजिह्व एवं जयगुप्त निमित्तज्ञानियों को | अपने निमित्तज्ञान से जानकर स्वयंप्रभा आदि से कहा-'इस समय महाराज को कुछ कष्ट उत्पन्न हुआ है | परन्तु वह उसी समय नष्ट भी हो गया । कोई पुरुष इसी समय कुशल समाचार लेकर आएगा । आप लोग निश्चिन्तता के साथ बैठे रहें, किसी तरह का भय न करें । महाराज इस समय पुण्य-कर्म के उदय से बिना किसी कष्ट के कुशलतापूर्वक निवास कर रहे हैं।' उसी समय द्वीपशिख नाम का विद्याधर आकाश से उतर कर पृथ्वी पर आया एवं उसने विधिपूर्वक स्वयंप्रभा तथा उसके पुत्र को नमस्कार किया । उसने कहा कि राजा श्रीविजय कुशलपूर्वक हैं, आप लोग शंका त्याग दीजिये । यह कह कर उसने सब वृत्तान्त ज्यों-का-त्यों कह सुनाया । उस समाचार को सुनकर स्वयंप्रभा की कान्ति मन्द पड़ गई एवं जिस प्रकार पृथ्वी दावानल (अग्नि) से जल जाती है, उसी प्रकार वह शोक-रूपी अग्नि से मानो झुलस-सी गई ॥४०॥ स्वयंप्रभा अपने पुत्र एवं सेना को लेकर अनेक विद्याधरों के साथ नगर से निकली एवं पुत्र को देखने के लिए शीघ्र ही उस वन में जा पहुँची । राजा श्रीविजय ने दूर से ही देखा कि माता आ रही है एवं वह शोक से व्याकुल-सी हो रही है । उन्हें देखकर वह सामने आया एवं उनके दोनों चरणकमलों में नमस्कार किया । स्वयंप्रभा ने अपने पुत्र को देखा एवं बड़े सन्तोष से उसका आलिंगन किया एवं फिर 'जय हो, जीवो' आदि वाक्यों के द्वारा उसे आशीर्वाद दिया। जब श्रीविजय सुख से बैठ गया, तब माता के पूछने
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