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उत्पन्न तथा शान्ति प्रदान करनेवाला धर्म सेवन प्रतिदिन करने लगे । नगर में प्रजा के लोग भी शान्ति के लिए दान, श्रीजिन-पूजा एवं महामन्त्र का जाप आदि द्वारा अनेक गुणों का भण्डार-रूप पुण्य सम्पादन करने लगे । इस प्रकार उस नगर में धर्म की प्रवृत्ति बहुत ही बढ़ गई थी । ठीक ही है; क्योंकि जिस प्रकार वज्र से पर्वत चूर-चूर हो जाता है, उसी प्रकार धर्म-सेवन से सब विघ्न नष्ट हो जाते हैं। सातवें दिन उस राज्य सिंहासन पर बैठी हुई यक्ष-प्रतिमा के मस्तक पर अकस्मात् भीषण शब्द करता हुआ निष्ठुर वज्रपात हुआ ।
इस प्रकार जब वह उपद्रव दूर हो गया, तब वे नगर-निवासी बड़े ही प्रसन्न हुए तथा द्विगुणित उत्साह से पूजा-दान-व्रत आदि के द्वारा धर्म सेवन करने लगे । लोग बड़े ही प्रसन्न हुए, उन्होंने उस नगर में सब ओ तोरण बाँधे तथा चारों ओर बड़े-बड़े नगाड़े बजवाए । इस प्रकार उन्होंने बड़ा भारी उत्सव मनाया । उस विघ्न के शान्त हो जाने से राजा को धर्म पर भारी विश्वास हो गया तथा अपने किए हुए धर्म का प्रत्यक्ष फल देख लेने से वह बहुत ही प्रसन्न हुआ । राजा ने सन्तुष्ट होकर उस निमित्त - ज्ञानी को बुलवाया, उसका आदर-सत्कार किया एवं पद्मिनीखेट के साथ-साथ उसे सौ गाँव प्रदान किए। सब मन्त्रियों ने भुक्ति एवं विधिपूर्वक श्री जिनेन्द्रदेव की शान्ति पूजा की एवं फिर शान्ति प्रदान करनेवाला महाभिषेक किया ॥१८०॥ पुण्य-कर्म के उदय से कलशों से राजा का अभिषेक किया एवं उन्हें सिंहासन पर विराजमान कर अपने राज्य का स्वामी बनाया । भगवान श्री जिनेन्द्रदेव के कहे हुए धर्म का सेवन करने से पुण्य कर्म के उदय से अनेक तरह के दुःख एवं शोक तथा मनुष्यों का नाशकारी समस्त विघ्नों का समूह शीघ्र ही नष्ट हो जाता है, इसमें कोई सन्देह नहीं है । यह मनुष्य धर्म के प्रभाव से सुन्दर स्त्रियाँ प्राप्त करता है, धर्म के ही प्रभाव से अच्छे सुख प्राप्त करता है, धर्म के ही प्रभाव से बड़ी भारी राज्य - विभूति को प्राप्त होता है एवं धर्म के ही प्रभाव से परलोक में स्वर्गों के सुख प्राप्त करता है । धर्म के प्रभाव से मनुष्यों के अत्यन्त तीव्र - मनुष्य, देव एवं सर्प आदि से उत्पन्न होनेवाले; अग्नि, जल आदि से उत्पन्न होनेवाले एवं मनुष्यों को नष्ट करनेवाले आकस्मिक अनन्त विघ्न नष्ट हो जाते हैं । संसार में यह धर्म सब तरह से सुख देनेवाला है, जीव का भला करनेवाला है, स्वर्ग मोक्ष को प्राप्त करनेवाला है, श्री तीर्थंकर की परम विभूति को देनेवाला है, गुणों की निधि है, पापों का नाश कराने वाला है, समस्त अनिष्टों का नाश करनेवाला है एवं
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