SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 4 Fb PFF हुआ था । एक दिन पाप-कर्म के उदय से भयभीत बह मण्डकौशिक गाड़ी पर बैठा हुआ कुम्भ का आहार बनने के लिए जा रहा था । दैवयोग से उसी मार्ग से भूत जा रहे थे । उन भूतों ने उस ब्राह्मण को रोक लिया; परन्तु कुम्भ हाथ में डण्डा लेकर आया एवं सब भूतों पर प्रहार करने लगा। कुम्भ के डर से भूतों ने उस ब्राह्मण को एक बिल में छुपा दिया एवं वे सब भाग गएं । परन्तु अशुभ-कर्म के उदय से बिल में एक अजगर ने उस ब्राह्मण को निगल लिया । आचार्य कहते हैं-'देखो, कर्म-रूपी शत्रुओं से घिरा हुआ यह प्राणी अनेक दुःखों की परम्परा को भोगता रहता है एवं जब तक वह कठिन तपश्चरण नहीं करता; तब तक वह कभी उन दुःखों से छूट नहीं सकता है ।।१६०॥ हे राजन् ! विजयार्द्ध पर्वत की गुफा में तो अनेक प्रकार से भय (संकट ) भरे हुए हैं; इसलिये आपका उसमें रहना सर्वथा अनुचित है । इसके लिए तो कुछ अन्य ही उत्तम उपाय सोचना चाहिए।' उसकी इस कथा को सुनकर सूक्ष्म बुद्धिवाला मतिसागर नाम का मन्त्री कहने लगा-'उस निमित्त-ज्ञानी ने यह तो नहीं कहा था कि महाराज श्रीविजय के ऊपर ही वज्र गिरेगा, वरन् उसने यह कहा है कि पोदनपुर नगर के स्वामी के ऊपर वज्र गिरेगा । इसलिए जब तक यह विघ्न दूर न हो जाए, तब तक इस नगर का राजा किसी अन्य को बना देना चाहिए।' मतिसागर की यह बात सब चतुर मन्त्रियों ने मान ली एवं सबने मिलकर राज्य-सिंहासन पर एक यक्ष का प्रतिबिम्ब स्थापित कर दिया । सब ने कहा कि आज से पोदनपुर का राजा तू ही है । यह कहकर सबने उसकी पूजा की । इधर महाराज श्रीविजय ने भी राज्य एवं भोगोपभोगों की सारी सम्पदाएँ छोड़ दीं । तदनन्तर वह राजा चैत्यालय में गया एवं शान्ति के लिए सब तरह के विनों को दूर करनेवाले श्रीजिनबिम्ब की महापूजा करने लगा । वह राजा सुपात्रों को समस्त अनिष्टों को दूर करनेवाला दान देने लगा तथा दीन एवं अनाथ लोगों को करुणादान देने लगा। वह एकाग्रचित्त से समस्त विनों को दूर करनेवाले एवं पन्च-परमेष्ठी के वाचक ऐसे पन्च-नमस्कार मन्त्र का जप बारम्बार करने लगा। उसने अन्य सब कार्य त्याग दिये एवं श्रीजिन-मन्दिर में बैठकर प्रतिदिन विघ्नों को दूर करनेवाला धर्मध्यान करने लगा । यह बात ठीक ही है कि धर्म से, श्रीजिनेन्द्रदेव की पूजा करने से, पात्रों को दान देने से एवं नमस्कार मन्त्र के जप के फल से सब तरह के विघ्न दूर हो जाते हैं ॥१७०॥ यही समझकर उसके मन्त्रीगण भी श्री जिनेन्द्रदेव की नित्य पूजा, जप तथा दान देकर शान्ति-कर्म करने लगे । राजा के सब कटुम्बी लोग भी विघ्न दूर करने के लिए दानपूजा से 34 Fb EF
SR No.002238
Book TitleShantinath Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSakalkirti Acharya, Lalaram Shastri
PublisherVitrag Vani Trust
Publication Year2002
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy