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________________ Fb PFF की सूचना देनेवाले हैं । भूख,प्यास, शीत, उष्ण आदि बाईस परिषहों को न सह सकने के कारण मैं | पद्मिनीखेट नगर में आया । पाप-कर्म के उदय से मुझ दुष्ट, मन्दभागी तथा पापी ने सब तरह के सुख देनेवाली जिनमद्रा छोड दी । वहाँ पर सोमशर्मा नामक मेरे मामा नेबड़े प्रेम से हिरण्यलोमा से उत्पन्न हुई चन्द्रानना नाम की अपनी पत्री का विवाह मेरे साथ कर दिया । मैं वहाँ पर कुछ उपार्जन तो करता था नहीं, सदा निमित्त-शास्त्र का ही अभ्यास करता रहता था। इधर उसके पिता का दिया हुआ सब धन शेष हो चुका था; इसलिये चन्द्रानना मुझसे अब कुछ विरक्त-सी हो गई थी ॥१३०॥ एक दिन भोजन के समय उसने क्रोध से मेरी थाली में मेरा इकटठा किया हुआ कौड़ियों का समूह पटक दिया एवं कहा-'यही तुम्हारा उपार्जित धन है ।' मेरी थाली स्फटिक के समान थी, उसमें वे कौड़ियाँ सूर्य की किरणों के समान जान पड़ती थीं तथा मेरी स्त्री ने उस थाली में हाथ भी धोए थे; इसलिए कौड़ी डालते समय उसमें पानी की धारा भी पड़ रही थी । इन सब बातों को देखकर मैंने निश्चय कर लिया-सम्मानपूर्वक मेरा अभिषेक होगा एवं मुझे प्रचुर धन भी मिलेगा । हे राजन् ! आज आपको यह समाचार अमोघजिह्न ने भेजा है।' उस निमित्त-ज्ञानी की यह युक्तिपूर्ण उक्ति सुनकर राजा चिन्ता से व्याकुल हो गया एवं उसको बिदाकर मन्त्रियों ने कहने लगा-'इस निमित्त-ज्ञानी की बात का निश्चय कर निर्णय करना चाहिये एवं फिर उसके निराकरण का उपाय करना चाहिए क्योंकि जब आयु का नाश अत्यन्त शीघ्र होनेवाला हो, तो फिर उसका उपाय करने के लिए कौन देर करेगा ?' राजा की यह बात सुनकर सुमति नाम का मन्त्री कहने लगा-'हे राजन् ! धर्म-सेवन करते हुए सावधानी पूर्वक लोहे की पेटी में बन्द होकर समुद्र के मध्य में रहना चाहिए।' सुमति मन्त्री की यह बात सुनकर सुबुद्धि नाम का मन्त्री कहने लगा-'समुद्र में रहना ठीक नहीं है, क्योंकि वहाँ मगरमच्छों का डर है। इसलिए विजयार्द्ध पर्वत की गुफा में रहना ठीक है।' सुबुद्धि मन्त्री की यह उक्ति सुनकर सब बातों को जानने वाला बुद्धिमान मन्त्री बुद्धिसागर एक प्रसिद्ध कथा कहने लगा-इसी भरतक्षेत्र के सिंहपुर नगर में सोम नाम का एक ज्ञानी किन्तु कुबुद्धि परिव्राजक रहता था, जो कि असत् शास्त्रों के अभ्यास से बड़ा ही अभिमानी हो गया । एक दिन वह वाद-विवाद में जिनदास से हार गया । समय पाकर वह मरा एवं उसी सिंहपुर नगर में एक विशाल भैंसा बन उत्पन्न हुआ ॥१४०॥ बुरे शास्त्रों के अभ्यास से उत्पन्न हुए पाप-कर्मों के उदय से वह एक छोटे व्यापारी के घर में आया । वहाँ पर FF. PFF
SR No.002238
Book TitleShantinath Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSakalkirti Acharya, Lalaram Shastri
PublisherVitrag Vani Trust
Publication Year2002
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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