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से आपने ऐसी भविष्यवाणी की है ?' वह निमित्त-ज्ञानी कहने लगा-'कुण्डलपुर नगर में राजा सिंहरथ राज्य करता है। उसके बुद्धिमान पुरोहित का नाम सुरगुरु है, मैं उनका ही निपुण शिष्य हूँ। बलभद्र के साथ दीक्षा लेकर मैंने सब अष्टांग-निमित्त पढ़े हैं एवं ध्यान लगाकर सुने हैं ॥११०॥ 'इस संसार में वे अष्टांग-निमित्त कौन-कौन से हैं, उनके नाम क्या हैं, फल क्या हैं एवं लक्षण क्या हैं ? हे निमित्त-शास्त्र के जाननेवाले ! मुझे सब सुनाओ।' राजा के इस प्रकार पूछने पर वह कहने लगा-'राजन ! शुभ-अशुभ को सचित करनेवाले उन अष्टांग-निमित्तों का वर्णन मैं करता हूँ, आप ध्यान लगाकर सुनिए । अन्तरीक्ष, भौम, अंग, स्वर, व्यन्जन, लक्षण छिन्न एवं स्वप्न-ये आठ 'निमित्त' कहलाते हैं । आकाश में शीघ्र एवं मन्दगति से चलनेवाले जो चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, तारे हैं--ये पाँच प्रकार के ज्योतिषी हैं । उनके उदय-अस्त से हार-जी, वृद्धिहानि, जीवन-मरण, हानि-लाभ, सुभिक्ष-दुर्भिक्ष, शुभ-अशुभ आदि अन्य भी अनेक बातें निमित्त-शास्त्र के विद्वानों द्वारा कही जाती हैं । सज्जनों के द्वारा वह वास्तविक 'अन्तरीक्ष' नाम का निमित्त-ज्ञान कहा जाता है । पृथ्वी के स्थानों के भेदों को जानकर हानि-वृद्धि का ज्ञान करना तथा पृथ्वी के भीतर के रत्न आदि का निश्चय करना 'भौम' नाम का निमित्त-ज्ञान कहलाता है । अंग-उपांगों को स्पर्श कर या देख कर जीवों के जीवन-मरण, रोग-आरोग्य, सुख-दुःख आदि अंग एवं तीनों कालों से उत्पन्न हुए शुभ-अशुभों का निरूपण करना चतुर पुरुषों के द्वारा 'अंग' नाम का निमित्त-ज्ञान कहलाता ॥ है । निमित्त-शास्त्रों को जाननेवाला चतुर भेरी, मृदंग वीणा आदि के शुभ-अशुभ स्वरों से तथा गर्दभ
पक्षी, हाथी आदि के स्वाभाविक सुस्वर-दुःस्वरों से प्राणियों के सब तरह के इष्ट-अनिष्टों को जान सकता है । यह संसार में 'स्वर' नाम का निमित्त-ज्ञान कहलाता है ॥१२०॥ मस्तक मुख आदि में उत्पन्न हुए तिल-चिह्न-घाव आदि से लक्ष्मी, स्थान, मान, लाभ-हानि आदि का जानना 'व्यन्जन' नाम का निमित्त-ज्ञान कहलाता है । श्रीवृक्ष, स्वस्तिक (सांथिया) आदि शरीर पर उत्पन्न हुए एक सौ आठ लक्षणों से भोग-ऐश्वर्य आदि की प्राप्ति का कथन करना 'लक्षण' नाम का निमित्त-ज्ञान है। देव, मनुष्य तथा के भेद से वस्त्र, शास्त्र आदि में चूहे आदि के द्वारा छेद करने पर उसका फल कहना “छिन्न' नाम का निमित्त-ज्ञान है । शुभ तथा अशुभ के भेद से स्वप्न दो प्रकार के हैं। उन्हें सुनकर मनुष्यों को उनके फलाफल आदि का यथार्थ कथन करना, 'स्वप्न' नाम का.निमित्त-ज्ञान है । ये सब मनुष्यों के सुख-दुःख
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