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________________ श्री शां ना थ तदनन्तर वैराग्य प्राप्त होकर बलभद्र शीघ्र ही मुक्ति रूपी स्त्री के स्वामी सुवर्णकुम्भ नाम के मुनिराज के समीप पहुँचे । उन्होंने उन मुनिराज की तीन प्रदक्षिणा दी, मस्तक झुकाकर उन्हें नमस्कार किया एवं मुनिराज के आदेशानुसार सात हजार राजाओं के साथ संयम धारण किया। उन्होंने शुक्लध्यान रूपी शस्त्र से घातिया कर्मों का नाश किया एवं इन्द्रादिकों के द्वारा पूज्य अनगार केवली का पद प्राप्त किया । इधर अर्ककीर्ति ने भी बलभद्र की उत्तम कथा सुनकर उनकी बड़ी स्तुति की एवं विचार किया कि वे बड़े ही धन्य हैं, जिन्होंने तप धारण किया । यद्यपि मैं बुद्धिमान हूँ तथापि अत्यन्त निन्द्य, चारों गतियों में परिभ्रमण करानेवाले, पाप का कारण एवं निर्ममता से त्याग करने योग्य गृहस्थाश्रम में अभी तक फँस रहा हूँ । । इस प्रकार अपनी निन्दा कर वह वैराग्य को प्राप्त हुआ एवं बुद्धिमानों के त्याग करने योग्य राज्य ति अमिततेज को समर्पण किया । वह रागद्वेष रहित होकर शीघ्र ही राजा एवं देवों के द्वारा पूज्य तथा आकाशगामी विपुलमति नाम के चारण मुनि के समीप पहुँचा । उसने मुनिराज के दोनों चरण-कमलों को नमस्कार किया, सब तरह के परिग्रहों को त्याग किया एवं मुक्ति-रूपी स्त्री को वश करनेवाली जिन-दीक्षा धारण की। उन्होंने बारह प्रकार का तपश्चरण किया एवं शुक्लध्यान रूपी शस्त्र से घातिया कर्मों को नाश कर केवलज्ञान प्राप्त किया ॥ १००॥ तदनन्तर उन्होंने बड़े-बड़े अतिशयों से सुशोभित, इन्द्रादि देवों के द्वारा पूज्य, शुभ एवं अत्यन्त सुख देनेवाली मुक्ति रूपी स्त्री को प्राप्त किया । अथानन्तर - पुण्य-कर्म के उदय से अमिततेज एवं श्रीविजय का सुखदायी समय बड़े प्रेम से व्यतीत होने लगा । एक दिन कोई पुरुष श्रीविजय के दरबार में आया एवं उन्हें आशीर्वाद देकर जोर से कहने लगा- 'राजन् ! मेरी बात सुनिए । आज से सातवें दिन पोदनपुर के राजा के मस्तक पर वज्रपात होगा, यह निश्चय समझकर शीघ्र ही इसके निवारण का उपाय कीजिए।' यह सुन कर युवराज क्रोधपूर्वक कहने लगा- 'लगता है, तू सब जाननेवाला है; इसलिये बता तो सही कि उस समय तेरे मस्तक पर क्या गिरेगा ?' युवराज की बात सुनकर वह आगन्तुक पुरुष कहने लगा- 'मेरे मस्तक पर अभिषेक के साथ रत्नों की वर्षा होगी। मेरे कहे हुए इन वचनों में सन्देह नहीं है ।'उसके इस प्रकार के निश्चित वचन सुनकर राजा को आश्चर्य हुआ एवं वह कहने लगा- 'हे मित्र ! इस आसन पर विराजिए, आप से कुछ बात-चीत करनी है । आपका गोत्र क्या है, गुरु कौन है, आपने क्या-क्या शास्त्र पढ़ा है एवं किस प्रकार पढ़ा है ? आपका नाम क्या है एवं किस कारण पु रा ण श्री शां ति ना थ पु रा ण ३१
SR No.002238
Book TitleShantinath Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSakalkirti Acharya, Lalaram Shastri
PublisherVitrag Vani Trust
Publication Year2002
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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