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________________ श्री शां ति ना थ हुआ । संसार के सुखों में अनुरक्त रहनेवाले अर्ककीर्ति एवं ज्योतिर्माला के सुतारा नाम की पुत्री हुई, जो कि रूप एवं लक्षणों से बड़ी ही सुशोभित थी । इधर त्रिपृष्ट एवं स्वयंप्रभा के श्रीविजय एवं जयभद्र नाम के दो पुत्र उत्पन्न हुए थे एवं ज्योतिप्रभा नाम की एक पुत्री उत्पन्न हुई थी । इस प्रकार महाराज प्रजापति को बहुत-सी विभूतियाँ प्राप्त हुई थीं। कभी एक दिन काल-लब्धि प्राप्त होने से वैराग्य उत्पन्न हुआ एवं वे विचार करने लगे-॥५०॥ 'यह राज्य - सम्पदा अनेक जीवों के साथ शत्रुता उत्पन्न करनेवाली है, भयानक है, पाप एवं सन्ताप का घर है तथा बध-बन्धन आदि को उत्पन्न करानेवाली है, घोर दुःख का कारण है; इसलिये इसको धिक्कार है ! यह लक्ष्मी अनेक चिन्ताओं को उत्पन्न करानेवाली है; पाप, दुःख एवं शोक प्रगट करनेवाली है, तीव्र दुःखों से उत्पन्न होनेवाली है एवं नरक देनेवाली है; इसलिए इससे कभी सुख नहीं मिल सकता । यह स्त्री भी दुर्गति देने में बड़ी कुशल है, मोह उत्पन्न करनेवाली है, भयानक है, निन्द्य है एवं सप्त धातुओं से बनी हुई है; ऐसी स्त्री का भला कौन बुद्धिमान सेवन करेगा ? ये पुत्र मनुष्यों को बांधने के लिए पाश (जाल) के समान हैं, इस लोक एवं परलोक दोनों मे कठिन दुःख देनेवाले हैं एवं धन-धान्य आदि सब विभूति का भक्षण कर जानेवाले हैं। जिस प्रकार आम के पकने पर उस पेड़ पर आम खाने के लिए बहुत सी पक्षी आ बैठते हैं एवं फल नष्ट हो जाने पर उसको त्यागकर सब अपने-अपने स्थान को चले जाते हैं; उसी प्रकार धनी कुल में भोग भोगने के लिए सब कुटुम्बी - जन एकत्र हो जाते हैं एवं भोग भोगने के बाद उस कुल को त्याग कर चारों गतियों में चले जाते हैं । यह शरीर अन्न-पान आदि द्रव्यों से पुष्ट तथा वस्त्राभरणों से सुशोभित होने पर भी जीव के साथ दुष्टों का-सा व्यवहार किया करता है । ये भोग नरक के दुःख देनेवाले हैं, पांप-रोग-क्लेश आदि के कारण हैं, दुःखपूर्वक प्राप्त होते हैं एवं बुद्धिमानों के द्वारा निन्द्य. गिने जाते । ऐसे भोगों से भला संसार में कौन सुखी हो सकता है ? यह अनादि संसार दुःखों से भरा हुआ है, सुख रहित है, अनन्त है एवं भयानक है; ऐसे संसार से भला कौन ज्ञानी पुरुष प्रेम करेगा ? हाथ में रक्खे हुए जलबिन्दु के समान जीवों की आयु भी क्षण-क्षण में नष्ट होती रहती है; फिर भी परलोक में हित चाहनेवाले लोग अपना कल्याण क्यों नही करते ॥ ६०॥ जब तक आयु नष्ट न जाए, जब तक बुढ़ापा न आ जाए एवं जब तक इन्द्रियाँ समर्थ बनी रहें, तब तक जीवों को अपना हित कर लेना चाहिए। जिस प्रकार घर में आग लग जाने पर कुँआ नहीं खोदा जा सकता, पु रा ण श्री शां ति ना थ पु रा ण २८
SR No.002238
Book TitleShantinath Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSakalkirti Acharya, Lalaram Shastri
PublisherVitrag Vani Trust
Publication Year2002
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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