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धारण न करने के कारण तथा सैद्र-ध्यान के कारण तथा आरम्भ-परिग्रह के कारण अत्यन्त दुःख देनेवाले सातवें नरक में पहुँचा । आचार्य कहते हैं-'देखो, इतनी बड़ी विभूति को धारण करनेवाला विद्याधरों का राजा होकर भी पापों के कारण दुर्गतियों में दुःख का पात्र होने से बच नहीं सका । पुण्य-कर्म के उदय से सूर्य एवं चन्द्रमा के समान सुशोभित होनेवाले त्रिपृष्ट एवं विजय दोनों ही भाई तीन खण्ड के स्वामी बन गये थे एवं बड़े ही भले जान पड़ते थे। सब भूमिमोर्चरी राजाओं ने, विद्याधरों के राजाओं ने एवं मग्ध आदि व्यन्तरों ने त्रिपृष्ट का राज्याभिषेक किया एवं इस तरह वह पृथ्वी पर बहुत-ही प्रसिद्ध हो गया । त्रिपृष्ट ने स्वयंप्रभा के पिता ज्वलनजटी को हर्षपूर्वक दो श्रेणियों का स्वामी बनाया । सो ठीक ही है, ॥ क्योंकि पुण्य से इस पृथ्वी पर भला क्या प्राप्त नहीं होता है ? अर्थात् सब कुछ प्राप्त होता है । देवों के समूह जिनकी रक्षा करते हैं-ऐसे खड्ग, शंख, धनुष, शक्ति, दण्ड, चक्र एवं गदा-ये सात रन चक्रवर्ती त्रिपृष्ट के प्रगट हुए थे । मोक्षगामी बलभद्र विजय के रत्नमाला, गदा, हल एवं मसूल-ये चार महारत्न धर्म के प्रभाव से प्रगट हुए थे। पहिले जन्म में उपार्जन किए हुए पुण्य-कर्म के उदय से त्रिपृष्ट को गुणवती तथा लावण्यमयी स्वयंप्रभा आदि सोलह हजार रानियाँ प्राप्त हुई थीं। धर्म के प्रभाव से बलभद्र को भी कुल, रूप, गुणों से सुशोभित सौभाग्यवती आठ हजार रानियाँ प्राप्त हुई थी ॥४०॥ धर्म के प्रभाव से उन दोनों भ्राताओं के चरण-कमलों को अनेक मुकुटबद्ध राजा मस्तक झुकाकर नमस्कार करते थे तथा उन दोनों की आज्ञा का पालन करते थे। इस प्रकार वे दोनों भाई पुण्य-कर्म के उदय से सुखसागर में मग्न थे तथा उनके शरीर तीनों खण्ड़ों में उत्पन्न होनेवाली लक्ष्मी से सुशोभित थे।
अथान्तर-उसी विजयार्द्ध पर्वत की उत्तर-श्रेणी के इन्द्रकान्त नाम के शुभ नगर में मेघवान नाम का राजा था । पुण्य-कर्म के उदय से अच्छे लक्षणों वाली मेघमाला नाम की उसकी रानी थी । उन दोनों के सुन्दरमुखी ज्योतिर्माला नाम की पुत्री उत्पन्न हुई थी । ज्योतिर्माला का विवाह विद्याधरों के स्वामी ज्वलनजटी के पुत्र अर्ककीर्ति के साथ बड़े उत्सव एवं विधि के साथ हुआ था । उन दोनों के अमिततेज नाम का पुत्र हुआ था, जो कि बहुत ही सुलक्षण था तथा कामदेव के समान रूप, लावण्य एवं सौभाग्य से सुशोभित था । पुण्य कर्म के उदय से बाल चन्द्रमा के समान वह कुमार किशोर अवस्था को प्राप्त हुआ । शस्त्र एवं शास्त्र से सम्बन्धित सब विद्यायें उसने पढ़ीं एवं अनुक्रम से वह यौवन अवस्था को प्राप्त
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