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________________ (जंवाई) बना लेने से आप सब विद्याधरों के स्वामी हो जायेंगे, यह बात निश्चित है; इसलिये ऐसा ही करना चाहिये । यह कथा श्री आदिनाथ तीर्थंकर के वचनों के अनुसार ही कही गई है ।' उस पौराणिक की यह बात सुनकर रथनूपुर के राजा ज्वलनज़टी ने उसकी बात मान ली एवं प्रसन्न होकर उसे वस्त्र, आभरण, सन्मान आदि से विभूषित किया । राजा ज्वलनजटी ने इन्द्र नाम के दत को बुलाया एवं पत्र तथा भेंट देकर उसी समय महाराज प्रजापति के पास भेजा ॥२२०॥ त्रिपष्ट के जयगुप्त नामक नैमित्तिक से पहिले ही यह बात जान ली थी इसलिये वह शीघ्र ही पुष्पकरण्डक नामक वन में आ गया था। वहीं पर ज्वलनजटी विद्याधर का दूत आकाश से उतरा । त्रिपृष्ट ने उसका स्वागत किया तथा उत्सव के साथ उसे राजसभा में ले गया । दूत ने जाकर महाराज के सामने भेंट रख नमस्कार किया तथा फिर विनम्र होकर खड़ा हो गया । महाराज ने अपने हाथ से उसे बैठने को आसन दिया । महाराज ने वह सब भेंट देखी तथा अपना सन्तोष प्रकट किया एवं 'हम आपकी भेंट से बहुत सन्तुष्ट हैं' यह कहकर दूत को भी सन्तुष्ट किया । तदनन्तर दूत ने निवेदन किया-'राजन् ! ज्वलनजटी विद्याधर, आप के पुत्रों में श्रेष्ठ श्री त्रिपृष्ट को अपनी कन्या समर्पण करना चाहता है।' यह कह दूत चुप हो गया । यह सुनकर महाराज प्रजापति ने सब बातें यथार्थ समझ ली तथा प्रसन्न होकर कहा-'ठीक है, रत्न तथा सोने का सम्बन्ध भला कौन नहीं चाहता है ?' तदनन्तर महाराज ने योग्य भेंट देकर दूत का आदर-सत्कार किया तथा अपनी कार्य-सिद्धि के लिए दूत को विदा किया । वह दूत बड़ी शीघ्रता से अपने स्वामी के पास गया तथा विवाह निमित्त शुभ कार्य प्रारम्भ करने का निवेदन किया। यह सुनकर ज्वलनजटी विद्याधर बड़ी विभूति के साथ कन्या को लेकर आकाश-मार्ग से पोदनपुर में आया । महाराज प्रजापति राजा ज्वलनजटी का आगमन सुनकर बड़े प्रेम से भारी विभूति के साथ शीघ्र ही स्वयं उनके सामने आए ॥२३०॥ उन्होंने उनका स्वागत किया । महाराज प्रजापति ने हर्ष से अपना सारा नगर सजाया, तोरण बंधवाये तथा बहुत-सी ध्वजाओं की मालायें बंधवायीं । ऐसे सुसज्जित नगर में महाराज प्रजापति बड़े उत्साह से राजा ज्वलनजटी को लाए । महाराज प्रजापति ने राजा ज्वलनजटी को योग्य स्थान पर ठहराया तथा स्नान-भोजन आदि सब तरह से उनका स्वागत किया, जिससे ज्वलनजटी बहुत-ही प्रसन्न हुआ । तदनन्तर राजा ज्वलनजटी ने रत्नमाला आदि से सुशोभित मण्डप बनवाया, अपने कुटुम्ब-परिवार के लोगों को बुलवाया तथा उन्हें विवाह में देने योग्य 44 Fb FEE
SR No.002238
Book TitleShantinath Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSakalkirti Acharya, Lalaram Shastri
PublisherVitrag Vani Trust
Publication Year2002
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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