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जाते हैं तथा कितने ही लोग संयम धारण कर, कितने ही श्री अरहन्तदेव की पूजा कर तथा कितने ही लोग दान देकर सुख की खान ऐसे स्वर्ग में जाकर उत्पन्न होते हैं । उस नगरी में रहनेवाले सद्गृहस्थ लोग श्री जिनेन्द्रदेव द्वारा वर्णित हिंसा आदि पापों से रहित धर्म को ही सदा एवं सब प्रकार से पालन करते हैं, अन्य धर्म का वे पालन भी नहीं करते। जिस प्रकार स्वयम्वर रचानेवाली कन्या वर के पास अपने-आप आ जाती है, उसी प्रकार धर्म के प्रताप से लोक में भरी हुई सुख प्रदायक लक्ष्मी भी उन धर्मात्माओं के पास अपने-आप आ जाती है । उस लक्ष्मी से वहाँ पर रहनेवाले विद्याधर को उनके पुण्य से उत्पन्न हुई भोगोपभोगों की अपार सामग्री प्राप्त होती है। उस लक्ष्मी से वहाँ पर रहनेवाले विद्याधर को उनके पुण्य से उत्पन्न हुई भोगोपभोग की अपार सामग्री प्राप्त होती है । वहाँ के रहनेवाले चतुर लोग अपने सफेद बालों को देखकर भोगों को छोड़ देते हैं तथा वैराग्य तपश्चरण धारण कर सम्यक्चारित्र के प्रभाव से वे धीर-वीर मोक्ष प्राप्त करते हैं । इस प्रकार उस नगरी में पुण्यवान सज्जनों को धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष- चारों ही पुरुषार्थों के महाफल प्राप्त होते हैं तथा बढ़ते रहते हैं । अत्यन्त शुभ सम्पदाओं से भरी नगरी प्रतिदिन ऐसी जान पड़ती थी, मानो धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष--इन चारों पुरुषार्थों की खान ही हो। जिस प्रकार महान विभूतियों से भरे हुए स्वर्ग में देवालय (देवों के विमान ) शोभित होते हैं, उसी प्रकार पुरुष तथा स्त्रियों से भरे हुए उस नगरी के ऊँचे-ऊँचे घर शोभायमान होते हैं ॥९०॥ उस नगरी के बाहर सब ऋतुओं की छटा से भरे हुए तथा कुएँ, बावड़ी तथा तालाबों से सुशोभित तथा नेत्रों को सुख देनेवाले वन-उपवन शोभायमान हैं । उन में से अपेक्षाकृत निर्जन वनों में कितने ही धीर-वीर योगी एवं मुनि मोक्ष प्राप्त करने के लिए पर्यंकासन से विराजमान होकर ध्यान करते हैं। कितने ही मुनिराज शरीर से ममत्व छोड़ कर पर्वत के समान निश्चल होकर कायोत्सर्ग धारण कर आत्म- ध्यान करते हैं। किसी वन में कितने ही मुनि केवल कर्मों को नष्ट करने के लिए एकाग्र चित्त होकर लोक- अलोक को प्रकाशित करनेवाले सिद्धान्त-शास्त्रों का पठन-पाठन करते हैं । वह नगरी शीत-उष्ण आदि उपसर्गों से रहित है, सुन्दर है तथा ध्यान को बढ़ानेवाली है, इसलिए ध्यान की सिद्धि के लिए मुनि लोग उसे कभी नहीं त्यागते हैं । इस प्रकार वह नगरी अनेकानेक अनुपम गुणों से भरपूर है । उस नगरी का स्वामी पुण्यवान तथा सम्पूर्ण गुणों का एकमात्र भंडार ज्वलनजी नाम का विद्याधर था । वह विद्याधर बड़ी भारी विभूति का स्वामी था, अनेक विद्याधर उसे
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