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________________ F4Fb PFF ही ऊँचे हैं, धूप-गन्ध से भरपूर हैं, पुष्प-वृष्टि से अत्यन्त दुर्गम हो रहे हैं तथा गीत, नृत्य बड़े-बड़े तुरई आदि बाजे के तथा जय-जय शब्दों से गुंजायमान हो रहे हैं । वह नगरी जिनालय के शिखरों पर फहराती हुई ध्वजा-रूपी उत्तम हाथों के द्वारा धर्म करने के लिए ही मानो पुण्यवान इन्द्रों को भी स्वर्ग से बुला रही है । उस नगरी में चतुर लोग अपने कल्याण के लिए विवाह आदि उत्सवों में श्रीजिन-मन्दिर में जाकर शान्ति प्रदाता भगवान श्री अरहन्तदेव की बड़ी पूजा करते हैं । वहाँ के मनुष्यों पर थोड़ा-सा भी दुःख आ पड़ने पर उसके निवारण के लिए जिनालय में जाकर दुःख एवं सन्ताप को दूर करनेवाले तथा पुण्य बढ़ानेवाले भगवान की महापूजा करते हैं । कितनी ही सुन्दर स्त्रियाँ पूजा की सामग्री लेकर मन्दिर में चलती हुई ऐसी शोभायमान होती हैं, मानो देवियाँ ही चल रही हों ॥७०॥ सुन्दर मुखवाली कितनी विद्याधारियाँ पूजा को समाप्त कर निकलती हुई देवांगनाओं के समान बहुत अच्छी जान पड़ती हैं । रूप, लावण्य एवं आभूषणों से सजी हुई कितनी ही स्त्रियाँ विमानों में बैठकर जिनालय में जाती हई देवांगनाओं के समान बहुत ही मनोज्ञ प्रतीत होती हैं । कितनी ही विद्याधारियाँ अकृत्रिम चैत्यालय में पूजा कर बड़ी विभूति के साथ लौटती हुई देवांगनाओं के समान जान पड़ती हैं । उस नगरी में विद्याधर लोग प्रातःकाल उठकर प्रतिदिन अपने-आप सामायिक आदि धर्म-ध्यान का पालन करते हैं । दोपहर के समय उदार त्यागी मनुष्य भगवान की पूजा कर दान देने के लिए द्वारापेक्षण करते है।। दानी बड़े आनन्द में मग्न होकर पुण्य बढ़ाने के लिए उत्तम पात्रों को छहों रसों से परिपूर्ण तथा प्रासुक उत्तम आहार-दान देते हैं । कितने ही दानियों के महादान देने से पन्चाश्रचर्य प्रगट होते हैं जो कि दाता, पत्र आदि के संयोग से आगे के लिए भी उत्तम फलों के सूचक होते हैं। कितने ही धर्मात्मा दानी उत्तम पात्र का संयोग न मिलने से खेद का अनुभव करते हैं तथा कितने ही दानी सत्पात्रों के मिल जाने से (उन्हें दान देकर) सन्तुष्ट होते हैं। इसी प्रकार सन्ध्या आदि समय में भी सज्जन लोग धर्मध्यान करते हैं, कायोत्सर्ग करते हैं तथा भगवान | श्री अरहन्तदेव की स्तुति करते हैं । उस नगरी में पूर्व पुण्य के उदय से पुण्यवान लोग दान, पूजा, व्रत करते हुए बड़े सुख से निवास करते हैं ॥४०॥ सम्यग्दृष्टि लोग पहिले भव में स्वर्ग में अच्छे-अच्छे पुण्य सम्पादन कर उस नगरी में उत्तम पूज्य कुल में तथा अच्छे घर में आकर जन्म लेते हैं । उस नगरी में जन्म लेकर कितने ही लोग दुष्कर चारित्र को धारण कर तथा उग्र तपश्चरण के बल से कर्मों का नाश कर मोक्ष को
SR No.002238
Book TitleShantinath Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSakalkirti Acharya, Lalaram Shastri
PublisherVitrag Vani Trust
Publication Year2002
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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