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की करबद्ध पूजा की एवं फिर भक्तिपूर्वक मस्तक नवा कर उत्तम गुणों का वर्णन कर उनकी स्तुति करने लगे ॥१५०॥ 'हे देव ! आप संसार के ज्ञाता हैं एवं ज्ञानियों में भी महाज्ञानी हैं। इस संसार में भला अन्य ऐसा कौन है, जो आप को समझाए ? क्योंकि आप महापुरुषों के भी गुरु हैं। जिस प्रकार लोग फूलों द्वारा वनस्पति की पूजा करते हैं, जलान्जलि अर्पित कर समुद्र की पूजा करते हैं एवं केवल भक्तिवश ही क्षुद्र दीपक से विराट सूर्य की पूजा करते हैं; उसी प्रकार हे जिनराज ! आपका सम्बोधन कर भक्ति करनेवाले हम सब भी आपकी केवल स्तुति करते । हे देव ! आप तीनों लोकों के स्वामी हैं, विद्वानों के गुरु हैं, आप ही संसार से भयभीत प्राणियों के रक्षक हैं एवं संसार से रक्षा करने के लिए आप ही मनुष्यों की शरण हैं । हे देव ! आप के धर्मोपदेश से श्रेष्ठ व्रतों को धारण कर कितने ही मनुष्य मोक्ष प्राप्त करते है, कितने ही पुण्यवान स्वर्ग में स्थान पाते हैं एवं कितने ही कल्पनातीत विमानों में उत्पन्न होते हैं। ति हे स्वामिन्! आज सम्यक्ज्ञान पर आवरण आच्छादित करनेवाला मनुष्यों का मिथ्याज्ञान रूपी अन्धकार आपकी वचन रूपी किरणों से नष्ट होकर दूर पलायन कर जाएगा। हे देव ! आप के तीर्थ (दिव्य ध्वनि) की प्रवृत्ति होने से आज रत्नत्रय रूपी महान मोक्षमार्ग प्रगट होगा, इसमें कोई संशय नहीं है । हे नाथ ! आज आपके कर (हाथ) में चारित्र रूपी महान अस्त्र होने से तीनों लोकों का विजेता मोह रूपी शत्रु भी स्वयं 'त्राहि-त्राहि' कहता हुआ भय से प्रकम्पित हो रहा है । हे स्वामिन्! आज आप के ज्ञान का उदय होने से इस संसार में मनुष्यों को स्वर्ग-मोक्ष प्राप्त करानेवाले सुख के सागर महान् धर्म का उदय होगा । हे प्रभो ! सूर्य के सदृश आप का उदय होने से खद्योत के समतुल्य पाखण्डी गण प्रभा रहित हो जायेंगे, इसमें कोई संशय नहीं है ॥ १६० ॥ हे देव ! आप के दीक्षा कल्याणक का समाचार सुनकर धर्म रूपी महासागर की वृद्धि होने से आज हम स्वर्ग निवासियों तथा मनुष्यों को अपार आनन्द हुआ है । हे श्री जिनेन्द्र ! आज आपका धर्मोपदेश सुनकर अनेक मोहग्रस्त मनुष्य मोह का नाश करेंगे, कामीजन काम चेष्टा से निवृत्त होंगे एवं पापीजन पाप करना त्याग देंगे। हे स्वामिन् ! आपके केवलज्ञान से सज्जन प्राणियों का उपकार होगा, इसमें कोई संशय नहीं है । इसलिए हे प्रभो ! आप केवलज्ञान प्राप्त करने के लिए उद्यम कीजिए । हे नाथ ! वैराग्य रूपी तीक्ष्ण अस्त्र के द्वारा सम्पूर्ण जगत् को विजितकर मोह रूपी दुष्ट योद्धा को निहतकर आप शीघ्र ही संयम धारण करेंगे। हे देव ! आप साम्राज्य के कठिन भार को त्याग कर अपनें
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