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धर्म का ही सेवन करना चाहिए । इसलिए बुद्धिमानों को बहुमूल्य मनुष्य पर्याय रूपी रत्न प्राप्त कर धर्म के बिना एक क्षण भी नहीं व्यतीत करना चाहिए । जो निर्मल धर्म का पालन करते हैं, उनके चरण कमलों में इन्द्र भी भक्तिपूर्वक नमस्कार करते हैं, तब अन्य की तो गणना ही क्या? ॥१४०॥ यही समझ कर सज्जनों को मोक्ष प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन श्री जिनेन्द्रदेव द्वारा वर्णित दयामय धर्म का पालन करना चाहिए । यह उत्तम क्षमा आदि दश प्रकार का धर्म सुख का सागर है, मोक्ष का कारण है, समस्त गुणों की निधि है, स्वर्ग के सोपान के समान है, इन्द्रों तक को अनेक ऋद्धियों का प्रदायक है, तीर्थंकर पद प्रदान करनेवाला है, समस्त कर्मों का विनाशक है, समस्त सांसारिक वैभव एवं शोभा का प्रदाता है एवं रत्नत्रय रूपी निधि आदि का आलय (घर) है; इसलिए मोक्ष की अभिलाषा करनेवाले पुरुषों (मुमुक्षुओं) को आत्मा की शुद्धि करने के लिए भगवान श्री जिनेन्द्रदेव के द्वारा वर्णित सद्धर्म का पालन करते रहना चाहिए । इति धर्मानुप्रेक्षा ॥१२॥ ... ये द्वादश अनुप्रेक्षाएँ शास्त्रों में वर्णित हैं, ये समग्र अनुप्रेक्षाएँ मुक्ति रूपी रमणी की सखी तुल्य हैं, सारभूत हैं तथा वैराग्य एवं धर्माचरण की जननी सदृश हैं । जो मनुष्यों अपने हृदय में इनको धारण करते हैं, वे तीनों लोकों के नाथ (स्वामी) बन जाते हैं, उनको सर्वप्रकारेण लक्ष्मी (वैभव) स्वयं उपलब्ध हो
जाती है, समग्र पदार्थ स्वतः प्राप्त हो जाते हैं, ज्ञान-चारित्र आदि समस्त धार्मिक गुण स्वयमेव उत्पन्न हो | जाते हैं एवं अन्त में वह वैराग्य एवं मुक्ति रूपी रमणी को प्राप्त हो जाता है । इस प्रकार अनुप्रेक्षाओं का चिन्तवन करने से भगवान के हृदय में अनन्त सुख का कारण एवं कर्म रूप शत्रुओं का विनाश करनेवाला वैराग्य द्विगुणित हो गया । विरक्त होकर उन्होंने षट् खण्ड पृथ्वी, नव विधि, चतुर्दश रल, भोग, काया, रानियों आदि का मोह त्याग दिया एवं गृहत्याग करने की प्रस्तुति करने लगे । अपने अवधिज्ञान से तथा अकस्मात् प्रगट होनेवाले चिह्नों से भगवान को वैराग्य उत्पन्न होना ज्ञात कर ब्रह्मलोक के निवासी, अत्यन्त शान्त, दीक्षा कल्याणक को सूचित करनेवाले देवर्षि, ब्रह्मचारी, निर्मल हृदय, एकावतारी, प्रवीण, एकादश अंग तथा चतुर्दश पूर्व के पारगामी एवं दिव्य मूर्तिधारी सारस्वत, आदित्य, वह्नि, अरुण, गर्दतोय, तुषित, अव्याबाध, अरिष्ट-ये अष्ट प्रकार के विचक्षण लौकान्तिक देव वहाँ आये एवं आते ही उन्होंने अतीव हर्षोल्लास से मस्तक नवा कर भगवान को नमस्कार किया। तदनन्तर उन्होंने श्रेष्ठ मंगल द्रव्यों से भगवान
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