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तप-व्रत-ध्यान आदि के द्वारा समस्त आस्रव को रोककर एवं कर्मों का नाश कर सदैव स्थिर रहनेवाली मोक्ष रूपी रमणी को प्राप्त होते हैं । इति आसवानुप्रेक्षा ॥७॥
जिस प्रकार छिद्र रहित जलयान समद को. उत्तीर्ण (पार पहँच) कर जाता है, उसी प्रकार धीर-वीर प्राणी सम्वर के द्वारा कर्मों का विनाश कर संसार से उत्तीर्ण (मुक्त) हो जाते हैं । विवेकी पुरुष समिति, व्रत, गुप्ति, परीषह जय, धर्मध्यान, शुक्लध्यान, अध्ययन, संयम आदि के द्वारा सम्वर धारण करते हैं । सम्वर के संग यदि अल्प मात्रा में तप-चारित्र-संयम आदि किया जाए तो वह भी सर्वप्रकारेण कल्याण प्रदायक एवं मोक्षवृक्ष का बीज बन जाता है । यह सम्वर जीव का परम मित्र है, सम्वर ही परम तप है, सम्वर ही स्वर्गमोक्ष प्राप्त करानेवाला है, सम्वर ही धर्म का कारण है एवं सम्वर ही अनन्त सुख प्रदायक है । जिसने कर्मों का आस्रव अवरुद्ध कर सम्वर धारण किया है, वही संसार से उत्तीर्ण होता है एवं वही मोक्ष को प्राप्त कर सकता है । फिर भला अन्य सुखों की प्राप्ति की तो उसके लिए गणना ही क्या है ? ॥९०॥ मोक्ष की अभिलाषा रखनेवाले योगी पुरुष सम्वर धारण करने के लिए सम्यग्दर्शन से मिथ्यात्व को, व्रतों से अविरति को, यत्नपूर्वक धर्म धारण कर प्रमादों को, क्षमा धारण से क्रोध रूपी शत्रु को, मार्दव से मान की, आर्जव से माया को, सन्ताप से लोभ को, कायोत्सर्ग से काया के ममत्व को , मौन से वचनयोग को एवं ध्यान व शास्त्रज्ञान के अभ्यास से मनोयोग को नष्ट करते हैं । इस प्रकार वे आस्रव के समस्त कारणों को नष्ट कर डालते हैं । जो जीव चारों गतियों के कारण रूप कर्मों को अवरुद्ध कर सम्वर धारण करता है, वही मोक्ष प्राप्त कर सकता है । बिना सम्वर के मोक्ष के लिए परिश्रम करना ही व्यर्थ है । ऐसा समझ कर मोक्ष की अभिलाषा करनेवाले मुनियों को समस्त इन्द्रियों तथा योगों का निग्रह कर एवं तपश्चरण धारण कर सदैव सम्वर धारण करना चाहिये । यह सम्वर सर्वप्रकारेण धर्म का निर्मल सागर है, सुख की निधि है, मुक्ति रूपी रमणी का सहोदर है, नरक रूपी गृह का द्वार है । तीर्थंकर भी सदैव इसकी सेवा करते हैं, यह अनन्त गुणों की खान है एवं निर्मल है; इसलिये बुद्धिमानों को मोक्ष प्राप्त करने के लिए अनेक प्रकार के संयम आदि के द्वारा सर्वदा समस्त कर्मों को अवरुद्ध कर सम्वर धारण करना चाहिये । इति सम्वरानुप्रेक्षा ॥८॥
सविपाक एवं अविपाक के भेद से निर्जरा दो प्रकार की होती है-जिस प्रक्रिया के द्वारा कर्म अपने
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