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जगत् रूपी प्रासाद के स्तम्भ ही हों । नख रूपी चन्द्रमा की किरणों से व्याप्त एवं देवों-मनुष्यों के द्वारा पूज्य भगवान के दोनों चरण कमल अशोक वृक्ष की शोभा को परास्त करते हुए सर्वदा सुशोभित रहते थे । नख से शिख तक भगवान की देह से जो अपार कांति विकीर्ण हो रही थी, उसकी शोभा का वर्णन संसार भर में कोई भी महान् विद्वान तक नहीं कर सकता । भगवान की काया वज्रमय अस्थियों से निर्मित थी एवं अन्तड़ी, चर्म आदि समस्त वजमय थे, फिर भला उनके बल का अनुमान इस संसार में कौन कर सकता था ? उनकी काया का संस्थान प्रथम समचतुरस्र था एवं वह काया द्वितीय धर्मस्थान के समतुल्य दिव्य परमाणुओं से निर्मित थी । भगवान की काया वात पित्त-कफ आदि दोषों से, समस्त प्रकार के रोगों से, मल-मूत्र से रहित लोकोत्तर थी। श्रीवृक्ष, शंख, कमल, स्वस्तिक, अंकुश, तोरण, चमर, श्वेतछत्र, सिंहासन, ध्वजा, मत्स्य, दो कुम्भ, कच्छप, चक्र, समुद्र, सरोवर, विमान, भवन, नाग, मनुष्य, नारी, सिंह, बाण-तूणीर (तरकश), मेरु, इन्द्र, गंगा नदी, पुर-गोपुर दैदीप्यमान युगल सूर्य, अश्व, पंखा, वेणु, वीणा, मृदंग, युगल मालाएँ, रेशमी वस्त्र, हाट, दैदीप्यमान कुण्डल आदि अनेक प्रकार के आभरण, उद्यान कलमी चावलों का पका एवं फला हुआ खेत, रत्नों का द्वीप, वज्र, पृथ्वी, लक्ष्मी, सरस्वती, गाय, वृषभ, चूड़ारत्न, महानिधि, कल्पलता, सुवर्ण, जम्बूवृक्ष, गरुड़, नक्षत्र, तारे, चन्द्रमा, ग्रह, सिद्धार्थ वृक्ष, मनोज्ञ प्रातिहार्य आदि तथा अन्य मंगल द्रव्यों को भी लेकर भगवान की काया पर एक शतक एवं अष्ट शुभ लक्षण थे एवं नौ शतक अन्य व्यन्जन थे ॥२००॥ इस प्रकार गुणों के सागर भगवान श्री शान्तिनाथ जब कुमार अवस्था को व्यतीत कर यौवन अवस्था को प्राप्त हुए थे, उस समय के उनके गुणों की संख्या का परिमाण कौन कर सकता था ? पुत्र के यौवन अवस्था को प्राप्त हो जाने पर पिता ने मन्द रागी पुत्र (श्री तीर्थंकर ) का विवाह विराट उत्सव के संग कुल-रूप-आयु-शील-कला-कान्ति आदि से सुशोभित दिव्य लावण्य रूपी समुद्र की तरंगों के सदृश पुण्यवती कन्याओं के संग विधिपूर्वक कर दिया था । तदनन्तर भगवान पुण्य कर्म के उदय से उन रानियों के साहचर्य में नवयौवनास्था के अनुसार अनेक प्रकार से अपार दाम्पत्य सुख भोगते थे ॥२१०॥ स्वयं अपना कल्याण करने की अभिलाषा लिए सौधर्म स्वर्ग का इन्द्र कभी गन्धर्वो के द्वारा गाए हुए गीतों से, कभी नृत्य-पारंगत देवियों के नृत्यों से, कभी किन्नरी देवियों के द्वारा झंकत वीणा आदि मनोहर वाद्यों से, कभी धर्म कथा से एवं कभी तत्व गोष्ठियों से भगवान का मनोरंजन
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