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________________ . . 'नन्द' आदि के शब्द हो रहे थे एवं असंख्य स्तोत्र पढ़े जा रहे थे । इस प्रकार इन्द्रों ने प्रसन्नता से विपुल विभूति के संग अनेक कलशों से भगवान (श्री तीर्थंकर देव) का अभिषेक समाप्त किया । तदनन्तर इन्द्र ने भक्तिपूर्वक भगवान की वन्दना करने के लिये सुगन्धित गन्धोदक से पूर्ण कलशों से उनका अभिषेक करना प्रारम्भ किया । विधि के ज्ञाता इन्द्र ने सुगन्धित द्रव्यों से प्रस्तुत दिव्य गन्धोदक जल से श्री तीर्थंकर भगवान का अभिषेक किया। समस्त दिशाओं में व्याप्त होनेवाली एवं संसार भर में प्रवाहित होनेवाली वह क्षीरसागर की धारा श्री जिनवाणी के समतुल्य हमलोगों को प्रसन्न करे । तीक्ष्ण तलवार की धारा के समान हमारे विज्ञ समूहों को नाश करनेवाली पुण्य धारा हमलोगों को मोक्षपद प्रदान करे ।।४०॥ जो जलधारा भगवान की देह का स्पर्श प्राप्त कर अत्यन्त पवित्र हो गई है, वह धारा भगवान की दिव्य ध्वनि के समान हमारे अंतःकरण को पवित्र करे । इस प्रकार गंधोदक से भगवान का अभिषेक कर संसार की शांति के लिए इन्द्रों ने उच्च स्वर में शांति की घोषणा की । तदनन्तर देवों ने अपनी आत्मा को शांत करने के लिए उस गंधोदक को पहिले तो मस्तक पर लगाया, फिर सम्पूर्ण देह पर लगाया एवं शेष भेंट स्वरूप स्वर्ग को ले गये । इस प्रकार इन्द्रों ने अतीव आनन्द से भगवान का अभिषेक किया एवं तीनों लोकों के द्वारा पूज्य भगवान का अनेक प्रकार से पूजन किया । दिव्यगंध, मुक्ताफल, कल्पवृक्षों के पुष्प, अमृतपिण्ड, माणिक्य, उत्तम धूप, उत्तम फल एवं अर्घ्य चढ़ा कर उन्होंने भगवान की पूजा की, शांतिधारा प्रक्षालित की एवं इस प्रकार भगवान का जन्माभिषेक कल्याणक समाप्त किया । फिर इन्द्रों ने प्रसन्न होकर समस्त देव-देवांगनाओं के संग भगवान को तीन प्रदक्षिणाएँ दी एवं मस्तक नवा कर उन्हें नमस्कार किया । उस समय आकाश से जलकणों के संग पुष्पों की वर्षा हुई एवं सुगन्धित केशर के पीत वर्ण एवं सुगन्धि से युक्त होकर वायु मंद-मंद प्रवाहित होने लगी । इस प्रकार प्रमुदित होकर इन्द्र ने जिनका अद्भुत स्नानोत्सव किया, ऐसे वे परम पवित्र भगवान तीनों लोकों को शीघ्र ही पवित्र करें । अथानन्तर-अभिषेक समाप्त होने पर इन्द्राणी ने प्रफुल्लित चित्त से तीनों लोकों के भावी गुरु (बालक भगवान) का श्रृंगार करना प्रारम्भ किया ॥५०॥ जिनका अभिषेक हो चुका है एवं जो अपने तेज से सूर्य को परास्त कर रहे हैं, ऐसे श्री शान्तिनाथ की काया पर लगे हुए जलकणों को उसने स्वच्छ निर्मल वस्त्र से पोंछा । भगवान को देह अत्यन्त सुगन्धित थी तथापि भक्ति में तत्पर इन्द्राणी ने सुगंधित चंदन से उस पर आलेपन किया । यद्यपि 44 4 44 |२११
SR No.002238
Book TitleShantinath Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSakalkirti Acharya, Lalaram Shastri
PublisherVitrag Vani Trust
Publication Year2002
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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