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है-अन्य नहीं ! देवियों ने प्रश्न किया-'हे देवी ! आपके समतुल्य अन्य रमणी कौन है ?' माता ने उत्तर दिया कि जो रमणी संसार के समस्त जीवों का उपकार करनेवाले श्री तीर्थंकर देव को उत्पन्न करती है, वही
मतुल्य है । इस प्रकार देवियों ने जो कुछ भी जिज्ञासा की-महादेवी ने गर्भ में विराजमान श्री तीर्थंकर भगवान के माहात्म्य से तत्काल उनका सटीक उत्तर दे दिया । देवियों ने तब द्विअर्थी प्रश्न किया- 'जो नित्य रमणी में आसक्त होते हुए भी अनासक्त है, जो कामी होते हुए भी विरक्त है, जो लोभ रहित होकर भी अत्यन्त लोभी है एवं जो कभी स्नान न करने पर भी पवित्र रहता है, वह कौन है ?' उत्तर माता ने कहा-'यह प्रहेलिका या पहेली है । इसका उत्तर भी द्वि-अर्थ बोधक है । जो नित्य रमणी में आसक्त होते हुए भी अनासक्त है । जो कामी अर्थात् काम्य पदार्थ (मोक्ष) को सिद्ध करनेवाला है, इसलिये वह राग-द्वेष युक्त होता हुआ भी विरक्त है । जो लाभ रहित होने पर भी मुक्ति की कामना रखता है, इसलिये वह लोभी है । कभी स्नान न करने पर भी सदा पवित्र रहता है, वह मुनि है।' इस उत्तर की सुनकर देवियों ने निवेदन किया है-'हे देवी ! आप अपना चित्त हरिहर आदि देवों में श्रद्धा से विलग रखें, क्योंकि तीन शलाका पद को धारण करनेवाले भगवान श्री शान्तिनाथ में ही आपका हृदय व्याप्त हो रहा है एवं वे
भगवान आप के गर्भ में अवतरित हुए हैं। इसीलिए ज्ञानीजन आपको परम पवित्र कहते हैं । (यह क्रियागुप्त | श्लोक है) हे जननी ! संसार के अखिल प्राणी आपके भाव पुत्र की ही जय बोलते हैं । क्योंकि आपका पुत्र अत्यन्त सुकृति है, गुणों का सागर है, इन्द्रनरेन्द्र आदि समस्त जन उसकी स्तुति करते हैं और तीनों लोकों के प्राणी उसकी आराधना करते हैं । (यह निरोष्ठय श्लोक है, जिसमें ओंठ न लगें और अर्थ भी निरोष्ठय अक्षरों में ही लिखा गया है) हे जननी ! आपका पुत्र अखिल शत्रुओं का नाशक है, सज्जन प्राणियों का रक्षक है, ऋषि रूपी सरोजों के लिए सूर्य समतुल्य है एवं तीर्थ का कर्ता है ॥२३०॥ (यह श्लोक निरोष्ठय हैं एवं इनके अर्थ के अक्षर भी निरोष्ठय हैं ।) हे देवी ! श्री जिनेन्द्र देव भगवान त्रिभुवन (तीनों लोकों) के स्वामी हैं एवं तीनों लोकों का हित करनेवाले हैं, इसलिये समस्त इन्द्र अपने-अपने अनुगत देवों के संग उनकी सेवा करने के लिए आते हैं । (यह बिन्दुमान श्लोक है)। हे देवी ! आपका पुत्र जाज्वल्यमान लक्षणों के समूह से शोभायमान है, समस्त देवों के द्वारा पूज्य है एवं तीनों लोकों का पालन करने में तत्पर है। (यह बिन्दुच्युत के श्लोक हैं)। इस प्रकार देवियों के द्वारा वर्णित कठिन
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