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कहा कि जो सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र एवं तप से विभूषित हैं तथा मुक्ति रूपी रमणी के प्रिय हैं एवं आत्मा का हित करनेवाले हैं, वे ही गुणी कहलाते हैं । दिक्कुमारियों ने तब जिज्ञासा की-'निर्गणी कौन हैं ?' माता ने स्पष्ट किया कि जो सम्यग्दर्शन, चारित्र, दान, शील, तप तथा श्रीजिन पजा से रहित हैं, वे निर्गणी कहलाते हैं । दिक्कुमारियों ने अगला प्रश्न किया-'जन्म किनका सफल है ?' माता ने कहा कि जिन धीर पुरुषों ने रत्नत्रयादि के द्वारा मोक्ष को अपने वश में कर लिया है , उन्हीं का जन्म सफल है । दिक्कुमारियों ने पुनः जिज्ञासा की-'निष्फल जन्म किसका है ?' माता ने कहा कि जो तपचारित्रव्रत-दान-पूजा आदि नहीं करते, उन्हीं का जन्म इस संसार में निष्फल समझना चाहिये । दिक्कुमारियों ने शंका व्यक्त की-'शीघ्र करने योग्य कार्य कौन-सा है ?' माता ने समाधान प्रस्तुत किया कि कर्मों का नाश करनेवाले एवं संसार को पूर्ण करनेवाले तप-धर्म-व्रत-दान-पूजा-परोपकार आदि कार्यों को यथा शीघ्र करना चाहिये । देवियों ने प्रश्न किया-'मनुष्यों के लिए कठिन शल्य क्या है ?' माता ने उत्तर दिया कि जो जीव हिंसादिक पाप व अनाचार का सेवन गुप्तरीति से (छिप कर) करते हैं, वही उनके लिए कठिन शल्य के समान चुभता रहता है । देवियों ने जिज्ञासा की-'संसार में अत्यन्त दुर्लभ मनुष्य कौन हैं ?' माता ने उत्तर दिया कि जो कभी अन्य (दूसरे) की निन्दा नहीं करते हैं एवं आत्मध्यान, अध्ययन आदि आत्मा के कार्यों में सदैव तत्पर रहते हैं, ऐसे ही मनुष्य संसार में दुर्लभ हैं ॥१२०॥ देवियों ने शंका व्यक्त की-'पक्षपात कहाँ करना चाहिये ?' माता ने स्पष्ट किया कि धर्म में, साधर्मी पुरुषों में, शास्त्र में, श्रीजिन-प्रतिमा में, श्रीजिन-चैत्यालय में एवं भगवान श्री जिनेन्द्रदेव के वर्णित सत्य-मार्ग में पक्षपात अवश्य करना चाहिये । देवियों ने नूतन प्रश्न किया-'मध्यस्थ भाव कहाँ रखना चाहिए ?' माता ने समाधान दिया, कि संसार में जो पुरुष रागी है, द्वेषी है, तीव्र मिथ्यात्व रूपी पिशाच से ग्रस्त है एवं दुष्ट है; उसके प्रति सदैव मध्यस्थ भाव रखना चाहिये । देवियों ने जिज्ञासा की-'अहर्निश (दिन-रात्रि) क्या चिन्तवन करना चाहिये?' माता. ने बतलाया, कि अहर्निश धर्मध्यान का चिन्तवन करना चाहिये । संसार की असारता का, शास्त्रों की आज्ञा का, मोक्ष प्राप्ति का, तप करने का एवं राग को घटाने का चिन्तवन सर्वदा करना चाहिये । देवियों ने पुनरपि प्रश्न किया-'इस संसार में उत्तम रमणी कौन-सी है ?' माता ने कहा कि जो शीलवती रमणी श्री तीर्थंकर देव सदृश नर-रत्नों को उत्पन्न करती है, वह रमणी ही सर्वोत्तम
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